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नज़्म
उस रंग-भरी पिचकारी को अंगिया पर तक कर मारी हो
सीनों से रंग ढलकते हों तब देख बहारें होली की
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
आ धमके ऐश ओ तरब क्या क्या जब हुस्न दिखाया होली ने
हर आन ख़ुशी की धूम हुई यूँ लुत्फ़ जताया होली ने
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
जब आई होली रंग-भरी सौ नाज़-ओ-अदा से मटक मटक
और घूँघट के पट खोल दिए वो रूप दिखला चमक चमक
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
वो प्रेमचंद-मुंशी-ए-बे-मिस्ल-ओ-बे-बदल
थी जिस के दम से बज़्म-ए-अदब में चहल-पहल