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नज़्म
नूर-ए-ख़ुर्शीद-ओ-सुरय्या जिस से हो जाए ख़जिल
ज़र्रा-ए-नाचीज़ में ऐसी ज़िया पैदा करें
मंशाउर्रहमान ख़ाँ मंशा
नज़्म
ताबिश-ए-रंग-ए-शफ़क़ आतिश-ए-रू-ए-ख़ुर्शीद
मिल के चेहरे पे सहर आई है ख़ून-ए-अहबाब
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
रश्क-ए-सद-ख़ुर्शीद था हर-ज़र्रा-ए-देहली-ए सुना
मारता चश्मक सफ़ा पर था ग़ुबार-ए-लखनऊ
हकीम आग़ा जान ऐश
नज़्म
छुप गया ख़ुर्शीद-ए-ताबाँ आई दीवाली की शाम
हर तरफ़ जश्न-ए-चराग़ाँ का है कैसा एहतिमाम
मोहम्मद सिद्दीक़ मुस्लिम
नज़्म
जब ख़ुर्शीद-ए-आज़ादी की फूटी थी किरन वो दिन आया
चमके थे ज़िया-ए-ख़ास से जब कोहसार-ओ-दमन वो दिन आया