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नज़्म
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
नून मीम राशिद
नज़्म
शाहिद-ए-बज़्म-ए-सुख़न नाज़ूरा-ए-मअ'नी-तराज़
ऐ ख़ुदा-ए-रेख़्ता पैग़मबर-ए-सोज़-अो-गुदाज़
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
रेख़्ता के हो तुम्हीं उस्ताद ग़ालिब आज भी
हाँ मगर इस बाग़ का अब बाग़बाँ संजीव है
अज़हर बख़्श अज़हर
नज़्म
ख़ून-ए-जिगर से तू ने जिस रेख़्ता को सींचा
आलम में नज़्अ' के है मिलता नहीं मसीहा
मोहम्मद ओवैस ख़ाँ
नज़्म
आ कि वाबस्ता हैं उस हुस्न की यादें तुझ से
जिस ने इस दिल को परी-ख़ाना बना रक्खा था
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
इस क़दर प्यार से ऐ जान-ए-जहाँ रक्खा है
दिल के रुख़्सार पे इस वक़्त तिरी याद ने हात