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नज़्म
रूठने वाले ब-पास-ए-वक़्त-ओ-आदाब-ए-शबाब
पिछली बातें भूल जाने का ज़माना आ गया
शमीम फ़ारूक़ बांस पारी
नज़्म
उस नार में ऐसा रूप न था जिस रूप से दिन की धूप दबे
इस शहर में क्या क्या गोरी है महताब-रुख़े गुलनार-लबे
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
मेरे माज़ी को अंधेरे में दबा रहने दो
मेरा माज़ी मिरी ज़िल्लत के सिवा कुछ भी नहीं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जिन की आँखों को रुख़-ए-सुब्ह का यारा भी नहीं
उन की रातों में कोई शम्अ मुनव्वर कर दे