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नज़्म
इस बदलते दौर में ये शान-ओ-अज़्मत है तेरी
मुल्क-ओ-मिल्लत को बहुत अब भी ज़रूरत है तेरी
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
इस बदलते दौर में ये शान-ओ-अज़्मत है तिरी
मुल्क-ओ-मिल्लत को बहुत अब भी ज़रूरत है तिरी
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
अहमद हमेश
नज़्म
मता-ए-दिल मता-ए-जाँ तो फिर तुम कम ही याद आओ
बहुत कुछ बह गया है सैल-ए-माह-ओ-साल में अब तक
जौन एलिया
नज़्म
हर सितम पर की बुलंद इस ने सदा-ए-एहतिजाज
बन के इक पैग़म्बर-ए-अम्न-ओ-अमाँ बढ़ता गया