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नज़्म
कैसी बातें करते हो जी क्या परियों का काम यही है
महल सराए छोड़ के अब वो सड़क किनारे आएँगी क्या
आसिम बद्र
नज़्म
कूचा-ए-बिंत-ए-सरा-ए-दहर में चलिए कभी सर-सलामत आइए
और इक रक़्स-ए-फ़ना तामील दर्स-ए-बे-ख़ुदी