aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "savaad-e-raumat-ul-kubraa"
तोड़ इस का रुमत-उल-कुबरा के ऐवानों में देखआल-ए-सीज़र को दिखाया हम ने फिर सीज़र का ख़्वाब
रौज़न-ए-दीवार-ए-शबख़ुश-अदा पुर-कार है
रौज़न-ए-दीवार-ए-शबख़ुश-अदा पुरकार है
(3)ऐ रहमत और हैबत वाले
रौनक़-ए-मकतब बताओ तो ज़राचार-हर्फ़ी लफ़्ज़ है वो कौन सा
कैसी आवाज़ हैकोई कहता है
कू-ब-कू फैलता जाता है हिसार-ए-मन-ओ-तूरौज़न-ए-हिज्र से मंज़िल का पता मिलता है
बंध गई है रहमत-ए-हक़ से हवा बरसात कीनाम खुलने का नहीं लेती घटा बरसात की
कलीद-ए-मख़्ज़न-ए-‘इरफ़ाँनवेद-ए-रौज़ा-ए-रिज़वाँ
तपती हुई ज़मीं परअल्लाह का जो घर है
ये चश्म-ए-रौज़न-ए-दिल बंद कर केआख़िरी उम्मीद का सूरज बुझा कर रख दिया
वही रौज़न-ए-सर-ए-गर्द थावो तमाज़त ऐसी बला की थी
रौनक़-ए-कौन-ओ-मकाँजिस्म में रूह-ए-रवाँ
जिस से बे-नूर ख़यालों पे चमक आती थीकाबा-ए-रहमत-ए-असनाम था जो मुद्दत से
अहल-ए-दुनिया के लिए नंग सहीरौनक़-ए-अंजुमन-ए-यार हूँ मैं
मुझ में तू रूह-ए-सरमदी मत फूँकरौनक़-ए-बज़्म-ए-आरिफ़ाँ न बना
मोहब्बत रौनक़-ए-दुनिया-ओ-दीं हैमोहब्बत चाँद सूरज की ज़मीं है
लुढ़कता तैरता भटकता पत्थरों की रहगुज़र से जाएगातो रौज़न-ए-फ़राज़-ए-कोहसार से
ओ आफ़्ताब-ए-रहमत-ए-दौराँ तुलूअ होओ अंजुम-ए-हमीयत-ए-यज़्दाँ तुलूअ हो
हुस्न-अफ़ज़ा-ए-मह-जबीनाँ हैरौनक़-ए-महफ़िल-ए-हसीनाँ है
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