aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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सीता राम की राहों को अब फूलों से महकाओचौदह बरस में लौटे घर को लछमन सीता राम
एक सफ़ेद-ओ-शफ़्फ़ाफ़ सीधुली चादर
मिरे कलेजे की रग रग से हूक उठती हैमुझे मिरी हर शिकस्तों की दास्ताँ न सुना
मेरी बच्ची मैं आऊँ न आऊँआने वाला ज़माना है तेरा
गुफ़्तुगू के हाथ नहीं होतेमगर टटोलती रहती है दर-ओ-दीवार
वही बे-ताबियाँ दिल कीवही फिरता हुआ दरिया
ऐ हूर-ए-जिनाँ जान-ए-चमन रूह-ए-नज़ाराऐ पैकर-ए-अनवार-ओ-दिल-आवेज़ दिल-आरा
दिन सितम-पेशा है राज़ों को उगल देता हैरात मा'सूम है राज़ों को छुपा लेती है
गडरिए के सुर बाँसुरी मेंहिरन की लबालब भरी चौकड़ी
वो दर्द भी था सिवा हदों सेतुम्हारी आमद का जिस में मुज़्दा छुपा हुआ था
शाम ही से थी फ़ज़ा में किसी जलते हुए कपड़े की बिसांदऔर हवा चलती थी जैसे
एक हैं अपने पेटू भाईखाते हैं दिन रात मलाई
मेरे दिल में जंगल हैऔर उस में भेड़िया रहता है
नेक दिल लड़कियोआरज़ू की नुमाइश से गुज़रो तो चारों तरफ़ देखना
हमारे ज़ेहनों पेकितनी सदियों के
मेरे घर के सामनेरात की गाड़ी का एक पहिया निकल गया
घंटियाँ गूँज उठीं गूँज उठींगैस बेकार जलाते हो बुझा दो बर्नर
ऐ इश्क़ न छेड़ आ आ के हमें हम भूले हुओं को याद न करपहले ही बहुत नाशाद हैं हम तू और हमें नाशाद न कर
तो क्याज़िंदगी ने तुम्हें वो सभी कुछ दिया
मैं ने चाहा था उसे रूह की राहत के लिएआज वो जान का आज़ार बनी बैठी है
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