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नज़्म
शाइ'र भी जो मीठी बानी बोल के मन को हरते हैं
बंजारे जो ऊँचे दामों जी के सौदे करते हैं
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
मैं पल दो पल का शाइ'र हूँ पल दो पल मिरी कहानी है
पल दो पल मेरी हस्ती है पल दो पल मिरी जवानी है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
नज़र मेरी नहीं ममनून-ए-सैर-ए-अरसा-ए-हस्ती
मैं वो छोटी सी दुनिया हूँ कि आप अपनी विलायत हूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
'ग़ालिब' जिसे कहते हैं उर्दू ही का शाइर था
उर्दू पे सितम ढा कर 'ग़ालिब' पे करम क्यूँ है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मेरा ये जुर्म कि मैं साहब-ए-इदराक-ओ-शुऊर
मेरा ये ऐब कि इक शाइर ओ फ़नकार हूँ मैं
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
वो बातें इल्म-ओ-हिकमत की कभी शिकवे-शिकायत की
तुम्हें तो याद होगा उन में ही इक दोस्त शाइर था
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
अल-ग़रज़ उड़ती चली जाती है बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर
शाइर-ए-आतिश-नफ़स का ख़ून खौलाती हुई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जन्नतें आबाद हैं तेरे दर-ओ-दीवार में
और तू आबाद ख़ुद शाइ'र के क़ल्ब-ए-ज़ार में