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नज़्म
साक़ी फ़ारुक़ी
नज़्म
मिरे शाने पे सर तक रख दिया है गीत गाए हैं
मिरी दुनिया बदल देती हैं ख़ुश-अल्हानियाँ उस की
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ज़रा सी फिर रुबूबियत से शान-ए-बे-नियाज़ी ली
मलक से आजिज़ी उफ़्तादगी तक़दीर शबनम से
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
न पैदा होगी खत-ए-नस्ख़ से शान-ए-अदब-आगीं
न नस्तालीक़ हर्फ़ इस तौर से ज़ेब-ए-रक़म होंगे
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
देखना जज़्ब-ए-मोहब्बत का असर आज की रात
मेरे शाने पे है उस शोख़ का सर आज की रात
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मिरे शाने पे जब सर रख के ठंडी साँस लेती थी
मिरी दुनिया में सोज़-ओ-साज़ का तूफ़ान आता था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मक़बरों की शान हैरत-आफ़रीं है इस क़दर
जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ से है चश्म-ए-तमाशा को हज़र
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मशरिक़ी पतलूँ में थी ख़िदमत-गुज़ारी की उमंग
मग़रिबी शक्लों से शान-ए-ख़ुद-पसंदी आश्कार