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नज़्म
दूरी तेरी भड़काए है अब तो मन में डाह
और हमारे होंटों का हर शब्द बना है आह
रुख़्साना निकहत लारी उम्म-ए-हानी
नज़्म
पर उस से मेरी शायरी में दर्द कम तो नहीं हो जाता
कोरे काग़ज़ पर भी कुछ शब्द बसते हैं
अमित ब्रिज शॉ
नज़्म
हर शब्द इस का हृदय-पट पर लिखा हुआ है
हिन्दी ज़बाँ का अमृत दिल में उतर गया है