aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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अब ये एहसास दम-ए-फ़िक्र-ए-सुख़न होने लगाअपनी ही नज़्मों का भूला हुआ किरदार हूँ मैं
संग-आबाद में क्या मैं ने दुकाँ खोली हैलोग हैरत-ज़दा आते हैं चले जाते हैं
तो फिर उस रात की पुर-हौल सियाही में अभीबर्क़ सी कौंदती
फ़क़ीरी में भी ख़ुश-वक़्ती केकुछ सामान फ़राहम थे
अपने एहसास के आईने में ख़ुद को देखाइक सिमटता हुआ साया हूँ बिखरता हुआ फूल
राह-ए-उल्फ़त की रिवायात-ए-कुहन ज़िंदा हैंसर-ब-कफ़ अहल-ए-वफ़ा बहर-ए-तमाशा गुज़रे
तुम नहीं आए थे जब तब भी तो मौजूद थे तुमआँख में नूर की और दिल में लहू की सूरत
मैं जीने की तमन्ना ले के उठती हूँमगर जब दिन गुज़रता है
दिन भर है चर्चा काम काशब और शराब-ए-जाँ-फ़ज़ा
चाँद ने मुस्कुरा कर कहादोस्तो
आ कि दिल की चाँदनी रू-पोश है तेरे बग़ैरआ कि साज़-ए-ज़िंदगी ख़ामोश है तेरे बग़ैर
तमाम शब मिरे कमरे कि ज़र्द खिड़की परकभी हवाओं के झोंकों ने आ के दस्तक दी
ये वो दिल्ली है कि दिल से जिस के दीवाने हैं हमये वो शम-ए-ज़िंदगी है जिस के परवाने हैं हम
मैं तो शाइ'र हूँबस तिरे हुस्न को एहसास बना रक्खा है
मैं ने माज़ी के खंडर में झाँकाहाल की धँसती हुई रेत पे सरगर्दां रहा
जब पास नहीं कुछ भी मेरेख़्वाहिश मक़्सद आदर्श के टूटे आईने
क्या मौसम-ए-गुल है कि यहाँ फूल नहींकाँटे दर-ओ-दीवार की ज़ीनत दर-ओ-दीवार पे रक़्साँ
दामन-ए-दिल पे ग़ुबार-ए-रह-ए-मंज़िल है अभीपा-ए-अफ़्कार में देरीना सलासिल है अभी
जवानियाँ हैं ज़ोर पर शबाब का ज़ुहूर हैब-फ़ैज़-ए-क़ल्ब-ए-मुतमइन नज़र नज़र ग़यूर है
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