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नज़्म
सर-ए-दरिया परस्तिश हो रही है फिर गुनाहों की
करो यारो शुमार-ए-नाला-ए-शब-गीर बिस्मिल्लाह
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मैं इस हुजूम में कैसे शुमार-ए-ज़ख़्म करूँ
सितम तो ये है कि मज़लूम मैं हूँ, ज़ालिम मैं
ज़ेहरा निगाह
नज़्म
किस की आँखों में समाया है शिआर-ए-अग़्यार
हो गई किस की निगह तर्ज़-ए-सलफ़ से बे-ज़ार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कोई मौज-ए-... कोई मौज-ए-शुमाल-ए-जावेदाँ जाने
शुमाल-ए-जावेदाँ के अपने ही क़िस्से थे जो गुज़रे