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नज़्म
ग़ाफ़िल आदाब से सुक्कान-ए-ज़मीं कैसे हैं
शोख़ ओ गुस्ताख़ ये पस्ती के मकीं कैसे हैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मोहब्बत अपनी यक-तौरी में दुश्मन है मोहब्बत की
सुख़न माल-ए-मोहब्बत की दुकान-आराई करता है
जौन एलिया
नज़्म
मैं शहीद-ए-जुस्तुजू था यूँ सुख़न-गुस्तर हुआ
ऐ तिरी चश्म-ए-जहाँ-बीं पर वो तूफ़ाँ आश्कार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सुकूत-आमोज़ तूल-ए-दास्तान-ए-दर्द है वर्ना
ज़बाँ भी है हमारे मुँह में और ताब-ए-सुख़न भी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तुर्बत है कहाँ उस की मस्कन था कहाँ उस का
अब अपने सुख़न-परवर ज़ेहनों में सवाल आया
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ज़ुल्फ़ों के ख़्वाब होंटों के ख़्वाब और बदन के ख़्वाब
मेराज-ए-फ़न के ख़्वाब कमाल-ए-सुख़न के ख़्वाब
साहिर लुधियानवी
नज़्म
था सरापा रूह तू बज़्म-ए-सुख़न पैकर तिरा
ज़ेब-ए-महफ़िल भी रहा महफ़िल से पिन्हाँ भी रहा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
इक दफ़्तर-ए-मज़ालिम-ए-चर्ख़-ए-कुहन खुला
वा था दहान-ए-ज़ख़्म कि बाब-ए-सुख़न खुला