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नज़्म
शलूका पहने हुए गुलाबी हर इक सुबुक पंखुड़ी चमन में
रंगी हुई सुर्ख़ ओढ़नी का हवा में पल्लू सुखा रही है
जोश मलीहाबादी
नज़्म
सूखा हुआ चेहरा ग़ुर्बत से उतरी हुई होंटों की लाली
मायूस नज़र टूटा हुआ दिल और हाथ भी पैसे से ख़ाली
नुशूर वाहिदी
नज़्म
दूर दरवाज़े के बाहर खड़े वो संतरी दोनों
शाम से आग में बस सूखी हुई टहनियों को झोंक रहे हैं
गुलज़ार
नज़्म
सूखा चेहरा दहक़ानों का, ज़ख़्मी पीठें मज़दूरों की
वो भूखों के अन-दाता हैं, हक़ उन का है बे-दाद करें
जमील मज़हरी
नज़्म
उस बैरी की ऊँची चोटी पर वो सूखा तन्हा पत्ता
जिस की हस्ती का बैरी है पतझड़ की रुत का हर झोंका
मजीद अमजद
नज़्म
हम दोनों शायद मुर्दा हैं एहसास का चश्मा सूखा है
या फिर शायद ऐसा है ये अफ़्साना बोसीदा है