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नज़्म
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
पढ़ के वो ग़ज़लों को मेरी बोले ये तहक़ीर से
आप तो शाइ'र बड़े हैं 'शाद' 'ग़ालिब' 'मीर' से
असरार जामई
नज़्म
बिगड़ जाती है क्यूँ बन बन के हर तदबीर भारत की
बना दे या ख़ुदा बिगड़ी हुई तक़दीर भारत की
नो बहार साबिर
नज़्म
लिल्लाह हबाब-ए-आब-ए-रवाँ पर नक़्श-ए-बक़ा तहरीर न कर
मायूसी के रमते बादल पर उम्मीद के घर तामीर न कर
अख़्तर शीरानी
नज़्म
नज़र को ख़ीरा करती है चमक तहज़ीब-ए-हाज़िर की
ये सन्नाई मगर झूटे निगूँ की रेज़ा-कारी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अब आगे का तहक़ीक़ नहीं गो सुनने को हम सुनते थे
उस नार की जो जो बातें थीं उस नार के जो जो क़िस्से थे
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
जिन का दीं पैरवी-ए-किज़्ब-ओ-रिया है उन को
हिम्मत-ए-कुफ़्र मिले जुरअत-ए-तहक़ीक़ मिले