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नज़्म
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
मैं कितना अपने दफ़्तर में हूँ कितना घर की ख़ल्वत में
वो मुझ को मुझ पे ही तक़्सीम कर के देखती होगी
अब्बास ताबिश
नज़्म
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
चादरें माल-ए-ग़नीमत में जो अब के आईं
सेहन-ए-मस्जिद में वो तक़्सीम हुईं सब के हुज़ूर