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नज़्म
कहते थे कि पिन्हाँ है तसव्वुफ़ में शरीअत
जिस तरह कि अल्फ़ाज़ में मुज़्मर हों मआनी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मैं तसव्वुफ़ के मराहिल का नहीं हूँ क़ाइल
मेरी तस्वीर पे तुम फूल चढ़ाती क्यूँ हो
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तेरे ही नग़्मे से कैफ़-ओ-इम्बिसात-ए-ज़िंदगी
तेरी सौत-ए-सरमदी बाग़-ए-तसव्वुफ़ की बहार
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तू ने देखी है वो पेशानी वो रुख़्सार वो होंट
ज़िंदगी जिन के तसव्वुर में लुटा दी हम ने
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ग़रज़ तसव्वुर-ए-शाम-ओ-सहर में जीते हैं
गिरफ़्त-ए-साया-ए-दीवार-ओ-दर में जीते हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ये रुपहली छाँव ये आकाश पर तारों का जाल
जैसे सूफ़ी का तसव्वुर जैसे आशिक़ का ख़याल
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
ब-मुश्ताक़ाँ हदीस-ए-ख़्वाजा-ए-बदरौ हुनैन आवर
तसर्रुफ़-हा-ए-पिन्हानश ब-चश्म-ए-आश्कार आमद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ये किस तरह याद आ रही हो ये ख़्वाब कैसा दिखा रही हो
कि जैसे सच-मुच निगाह के सामने खड़ी मुस्कुरा रही हो
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
अपने माज़ी के तसव्वुर से हिरासाँ हूँ मैं
अपने गुज़रे हुए अय्याम से नफ़रत है मुझे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
रियाज़ी हो कि मंतिक़ फ़ल्सफ़ा हो या तसव्वुफ़ हो
सब इस की बज़्म में मौजूद हैं और जान-ए-महफ़िल हैं