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नज़्म
मजीद अमजद
नज़्म
चिड़ियाँ ख़्वाबों के जुज़दाँ में वरक़ उलटती हैं
फूल बदन की टहनी पर से टूट के गिरते जाते हैं
अब्दुर्रशीद
नज़्म
लिए हाथों में नेज़े चाँद की किरनें झपटती थीं
सियह-पोशान तारीकी की हर सफ़ को उलटती थीं
अर्श मलसियानी
नज़्म
साज़िशें लाख उड़ाती रहीं ज़ुल्मत की नक़ाब
ले के हर बूँद निकलती है हथेली पे चराग़
साहिर लुधियानवी
नज़्म
इलाही फिर मज़ा क्या है यहाँ दुनिया में रहने का
हयात-ए-जावेदाँ मेरी न मर्ग-ए-ना-गहाँ मेरी