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नज़्म
तुम्हारी तर्बियत में मेरा हिस्सा कम रहा कम-तर
ज़बाँ मेरी तुम्हारे वास्ते शायद कि मुश्किल हो
जौन एलिया
नज़्म
ख़ुदा-ए-लम-यज़ल का दस्त-ए-क़ुदरत तू ज़बाँ तू है
यक़ीं पैदा कर ऐ ग़ाफ़िल कि मग़लूब-ए-गुमाँ तू है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
नहीं मिन्नत-कश-ए-ताब-ए-शुनीदन दास्ताँ मेरी
ख़मोशी गुफ़्तुगू है बे-ज़बानी है ज़बाँ मेरी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ज़बाँ पर बे-ख़ुदी में नाम उस का आ ही जाता है
अगर पूछे कोई ये कौन है बतला नहीं सकता
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ज़बाँ पर हैं अभी इस्मत ओ तक़्दीस के नग़्मे
वो बढ़ जाती है इस दुनिया से अक्सर इस क़दर आगे
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जब तिरे दामन में पलती थी वो जान-ए-ना-तवाँ
बात से अच्छी तरह महरम न थी जिस की ज़बाँ