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डार्लिंग

सआदत हसन मंटो

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MORE BYसआदत हसन मंटो

    ये उन दिनों का वाक़िया है। जब मशरिक़ी और मग़रिबी पंजाब में क़तल-ओ-ग़ारतगरी और लूट मार का बाज़ार गर्म था। कई दिन से मूसलाधार बारिश होरही थी। वो आग जो इंजनों से बुझ सकी थी। इस बारिश ने चंद घंटों ही में ठंडी करदी थी। लेकिन जानों पर बाक़ायदा हमले हो रहे थे और जवान लड़कीयों की इस्मत बदस्तूर ग़ैर महफ़ूज़ थी। हट्टे कट्टे नौजवान लड़कों की टोलियां बाहर निकलती थीं और इधर उधर छापे मार कर डरी डुबकी और सहमी हुई लड़कीयां उठा कर ले जाती थीं।

    किसी के घर पर छापा मारना और उस के साकिनों को क़तल करके एक जवान लड़की को कांधे पर डाल कर ले जाना बज़ाहिर बहुत ही आसान काम मालूम होता है लेकिन “स” का बयान है कि ये महज़ लोगों का ख़्याल है। क्योंकि उसे तो अपनी जान पर खेल जाना पड़ा था।

    इस से पहले कि मैं आप को “स” का बयान करदा वाक़िया सुनाऊं। मुनासिब मालूम होता है कि उस से आप को मुतआरिफ़ क़रादूं। एक मामूली जिस्मानी और ज़हनी साख़्त का आदमी है। मुफ़्त के माल से उस को उतनी ही दिलचस्पी है जितनी आम इंसानों को होती है। लेकिन माल-ए-मुफ़्त से इस का सुलूक दिल-ए-बेरहम का सा नहीं था। फिर भी वो एक अजीब-ओ-ग़रीब ट्रेजडी का बाइस बन गया। जिस का इल्म उसे बहुत देर में हुआ।

    स्कूल में “स” औसत दर्जे का तालिब-ए-इल्म था। हर खेल में हिस्सा लेता था। लेकिन खेलते खेलते जब नौबत लड़ाई तक जा पहुंची थी तो “स” इस में सब से पेश पेश होता। खेल में वो हर क़िस्म के ओछे हथियार इस्तिमाल कर जाता था। लेकिन लड़ाई के मौक़ा पर इस ने हमेशा ईमानदारी से काम लिया।

    मुसव्विरी से “स” को बचपन ही से दिलचस्पी थी। लेकिन कॉलेज में दाख़िल होने के एक साल बाद ही उस ने कुछ ऐसा पलटा खाया कि तालीम को ख़ैरबाद कह कर साईकलों की दुकान खोल ली।

    फ़साद के दौरान में जब उस की दुकान जल कर राख हो गई तो उस ने लूट मार में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। इंतिक़ामन कम और तफ़रीहन ज़्यादा, चुनांचे इसी दौरान में इस के साथ ये अजीब-ओ-ग़रीब वाक़िया पेश आया। जो इस कहानी का मौज़ू है। उस ने मुझ से कहा। “मूसलाधार बारिश होरही थी। मनों पानी बरस रहा था। मैंने अपनी ज़िंदगी में इतनी तेज़-ओ-तुंद बारिश कभी नहीं देखी। मैं अपने घर की बरसाती में बैठा सिगरेट पी रहा था। मेरे सामने लूटे हुए माल का एक ढेर पड़ा था। बेशुमार चीज़ें थीं मगर मुझे इन से कोई दिलचस्पी थी। मेरी दुकान जल गई थी। मुझे इस का भी कोई इतना ख़्याल नहीं था शायद इस लिए कि मैंने लाखों का माल तबाह होते देखा था... कुछ समझ में नहीं आता, दिमाग़ की क्या कैफ़ीयत थी... इतने ज़ोर से बारिश हो रही थी। लेकिन ऐसा लगता था कि चारों तरफ़ ख़ामोशी ही ख़ामोशी है और हर चीज़ ख़ुश्क है... जले हुए मरुदण्डों की सी बू आरही थी। मेरे होंटों में जलता हुआ सिगरट था। उस के धोएँ से भी कुछ ऐसी ही बू निकल रही थी... जाने क्या सोच रहा था और शायद कुछ सोच ही नहीं रहा था कि एक दम बदन पर कपकपी सी दौड़ गई और जी चाहा कि एक लड़की उठा कर ले आऊं। जूंही ये ख़्याल आया। बारिश का शोर सुनाई देने लगा और खिड़की के बाहर हर चीज़ पानी में शराबोर नज़र आने लगी... मैं उठा, सामने लूटे हुए माल के ढेर से सिगरटों का एक नया डिब्बा उठा कर मैंने बरसानी पहनी और नीचे उतर गया।”

    सड़कें अंधेरी और सुनसान थीं। सिपाहीयों का पहरा भी नहीं था। मैं देर तक इधर उधर घूमता रहा। इस दौरान में कई लाशें मुझे नज़र आईं। लेकिन मुझ पर कोई असर हुआ। घूमता घामता में सिवल लाईन्ज़ की तरफ़ निकल गया। लुक फ्री हुई सड़क बिलकुल ख़ाली थी। जहां-जहां बजरी उखड़ी हुई थी। वहाँ बारिश झाग बन कर उड़ रही थी। दफ़अतन मुझे मोटर की आवाज़ आई। पलट कर देखा तो एक छोटी सी मोटर बीबी ऑस्टन अंधा धुंद चली आरही थी। मैं सड़क के ऐन दरमयान में खड़ा होगया और दोनों हाथ इस अंदाज़ से हिलाने लगा। जिस का मतलब ये था कि रुक जाओ।

    मोटर बिलकुल पास गई मगर उस की रफ़्तार में फ़र्क़ आया। चलाने वाले ने रुख़ बदला। मैं भी पैंतरा बदल कर उधर हो गया। मोटर तेज़ी से दूसरी तरफ़ मुड़ गई। मैं भी लपक कर उधर होलिया। मोटर मेरी तरफ़ बढ़ी मगर अब उस की रफ़्तार धीमी होगई थी मैं अपनी जगह पर खड़ा रहा... पेशतर इस के कि मैं कुछ सोचता मुझे ज़ोर से धक्का लगा और मैं उखड़ कर फुटपाथ पर जागरा। जिस्म की तमाम हड्डियां कड़कड़ा उठीं मगर मुझे चोट आई। मोटर के ब्रेक चीख़े, पही्ये एक दम फ़स्ले और मोटर तैरती हुई सामने वाले फुटपाथ पर चढ़ कर एक दरख़्त से टकराई और साकित होगई। मैं उठा और उस की तरफ़ बढ़ा। मोटर का दरवाज़ा खुला और एक औरत सुर्ख़ रंग का भड़कीला मोमी रेनकोट पहने बाहर निकली। मेरी कड़ कड़ाई हुई हड्डियां ठीक हो गईं और जिस्म में हरारत पैदा होगई। रात के अंधेरे में मुझे सिर्फ़ उस का शोख़ रंग रेनकोट ही दिखाई दिया। लेकिन इतना इशारा काफ़ी था कि इस मोमी कपड़े में लिपटा हुआ जो कोई भी है। सिनफ़-ए-नाज़ुक में से है।

    मैं जब उस की तरफ़ बढ़ा तो उस ने पलट कर मेरी तरफ़ देखा। बारिश के लरज़ते हुए पर्दे में से मुझे देख कर भागी। मगर मैंने चंद गज़ों ही में उसे जा लिया जब हाथ इस के चिकने ज़ीन कोट पर पड़ा तो वो अंग्रेज़ी में चलाई। “हेल्प हेल्प

    मैंने उस की कमर में हाथ डाला और गोद में उठा लिया। वो फिर अंग्रेज़ी में चलाई “हेल्प हेल्प ही इज़ किलिंग मी” मैंने इस से अंग्रेज़ी में पूछा। “आर यू इंग्लिश वोमेन” फ़िक़रा मुँह से निकल गया तो ख़्याल आया कि की जगह मुझे एन कहना चाहिए था। इस ने जवाब दिया, “नौ”

    अंग्रेज़ औरतों से मुझे नफ़रत है। चुनांचे मैंने उस से कहा, “दन इट इज़ ऑल राईट।”

    अब वो उर्दू में चिल्लाने लगी, “तुम मार डालोगे मुझे। तुम मार डालोगे मुझे।”

    मैंने कोई जवाब दिया। इस लिए कि मैं उस की आवाज़ से, उस की शक्ल-ओ-सूरत और उम्र का अंदाज़ा लगा रहा था। लेकिन डरी हुई हुई आवाज़ से क्या पता चल सकता था। मैंने इस के चेहरे पर से हुड हटाने की कोशिश की। पर इस ने दोनों हाथ आगे रख दिए। मैंने कहा, “हटाओ” और सीधा मोटर की तरफ़ बढ़ा। दरवाज़ा खोल कर उस को पिछली सीट पर डाला और ख़ुद अगली सीट पर बैठ गया। गियर दुरुस्त कर के सेल्फ़ दबाया तो इंजन चल पड़ा... मैंने कहा “ठीक है।” हैंडल घुमाया। गाड़ी को फ़ुट पाथ पर से उतारा और सड़क में पहुंच कर अक्सलरीटर पर पैर रख दिया... मोटर तैरने लगी।

    घर पहुंच कर मैंने पहले सोचा कि ऊपर बरसाती ठीक रहेगी। लेकिन इस ख़्याल से कि लौंडिया को ऊपर ले जाने में झिक झिक करनी पड़ेगी। इस लिए मैंने नौकर से कहा। दीवान ख़ाना खोल दो। इस ने दीवानख़ाना खोला तो मैंने उसे घुप्प अंधेरे ही में सोफे पर डाल दिया। सारा रस्ता ख़ामोश रही थी। लेकिन सोफे पर गिरते ही चिल्लाने लगी, “डोंट किल मी... डोंट किल मी प्लीज़।”

    मुझे ज़रा शायरी सूझी, “आई वोंट किल यू... आई वोंट किल यू डार्लिंग।”

    वो रोने लगी। मैंने नौकर से कहा। चले जाओ। वो चला गया। मैंने जेब से दिया सिलाई निकाली। एक एक करके सारी तीलियां निकालें मगर एक भी सुलगी। इस लिए कि बारिश में उन के मसालहे का बिलकुल फ़ालूदा हो गया था। बिजली का करंट कई दिनों से ग़ायब था... ऊपर बरसाती में टूटे हौले माल के ढेर में कई बैटरियां पड़ी थीं। लेकिन मैंने कहा। अंधेरे ही में ठीक है, मुझे कौन सी फोटोग्राफी करनी है... चुनांचे बरसाती उतार कर मैंने एक तरफ़ फेंक दी और इस से कहा, “लाईए मैं आप का रेनकोट उतार दूं।”

    मैं नीचे सोफे की जानिब झुका। लेकिन वो ग़ायब थी। मैं बिलकुल ना घबराया। इस लिए कि दरवाज़ा नौकर ने बाहर से बंद कर दिया था। घुप अंधेरे मैं इधर उधर मैंने उसे तलाश करना शुरू किया। थोड़ी देर के बाद हम दोनों एक दूसरे के साथ भिड़ गए और तिपाई के साथ टकरा कर गिर पड़े। फ़र्श पर लेटे ही लेटे मैंने उस की तरफ़ हाथ बढ़ाया जो गर्दन पर जा पड़ा। वो चीख़ी मैंने कहा, “चीख़ती क्यों हो... मैं तुम्हें मारूंगा नहीं।”

    उस ने फिर सिसकियां लेना शुरू कर दीं। शायद उस का पेट ही था जिस पर मेरा हाथ पड़ा। वो दोहरी हो गई। मैंने जैसा भी बन पड़ा उस के रेनकोट के बटन खोलने शुरू कर दिए। मोमी कपड़ा भी अजीब होता है जैसे बूढ़े गोश्त में चिकनी चिकनी झुर्रियां पड़ी हूँ। वो रोती रही और इधर उधर लिपट कर मुज़ाहमत करती रही। लेकिन मैंने पूरे बटन खोल दिए इसी दौरान में मुझे मालूम वो कि वो साड़ी पहने थी... मैंने कहा ये तो ठीक रहा। चुनांचे मैंने ज़रा मुआमला देखा... ख़ासी सुडौल पिंडली थी जिस के साथ मेरा हाथ लगा... वो तड़प कर एक तरफ़ हट गई। मैं पहले ज़रा यूं ही सिलसिला कर रहा था। पिंडली के साथ जब मेरा हाथ लगा तो बदन में चार सौ चालीस वॉल़्ट पैदा होगए। लेकिन मैंने फ़ौरन ही ब्रेक लगा दिए कि सहज पक्के सौ मीठा हुए... चुनांचे मैंने शायरी शुरू कर दी।

    “डार्लिंग। मैं तुम्हें यहां क़त्ल करने के लिए नहीं लाया... डरो नहीं... यहां तुम ज़्यादा महफ़ूज़ हो... जाना चाहो तो चली जाओ। लेकिन बाहर लोग दरिंदों की तरह चीर फाड़ देंगे... जब तक ये फ़साद हैं तुम मेरे साथ रहना... तुम पढ़ी लिखी लड़की हो, मैं नहीं चाहता... कि तुम गंवारों के चंगुल में फंस जाओ...”

    उस ने सिसकियां लेते हुए कहा, “यू वोंट किल मी?”

    मैंने फ़ौरन ही कहा, “नौ सर।”

    वो हंस पड़ी... मुझे फ़ौरन ही ख़्याल आया कि औरत को सर नहीं कहा करते। बहुत ख़िफ़्फ़त हुई। लेकिन उस के हंस पड़ने से मुझे कुछ हौसला होगया। मैंने कहा। मुआमला पटा समझो, चुनांचे मैं भी हंस पड़ा, “डार्लिंग, मेरी अंग्रेज़ी कमज़ोर है।”

    थोड़ी देर ख़ामोश रहने के बाद उस ने मुझ से पूछा। “अगर तुम मुझे मारना नहीं चाहते तो यहां क्यों लाए हो?”

    सवाल बड़ा बे ढब था। मैंने जवाब सोचना शुरू किया। लेकिन तैय्यार हुवा मैं ने कहा जो मुँह में आए कह दो, “मैं तुम्हें मारना बिलकुल नहीं चाहता। इस लिए कि मुझे ये काम बिलकुल अच्छा नहीं लगता... तुम्हें यहां क्यों लाया हूँ?... इस का जवाब ये है कि मैं अकेला था।”

    वो बोली। “तुम्हारा नौकर तुम्हारे पास रहता है।”

    मैंने बग़ैर सोचे समझे जवाब दे दिया। “उस का क्या है वो तो नौकर है।”

    वो ख़ामोश होगई। मेरे दिमाग़ में नेकी के ख़्याल आने लगे मैंने कहा। हटाओ चुनांचे उठ कर इस से कहा, “तुम जाना चाहती हो तो चली जाओ। उठो।”

    मैंने उस का हाथ पकड़ा। वो उठ खड़ी हुई। एक दम मुझे उस की पिंडली का ख़्याल आगया और मैंने ज़ोर से उस को अपने सीने के साथ चिमटा लिया। उस की गर्मगर्म सांस मेरी ठोढ़ी के नीचे घुस गई। मैंने अटकल पच्चू अपने होंट उस के होंटों पर जमा दिए। वो लरज़ने लगी। मैंने कहा। “डार्लिंग डरो नहीं... मैं तुम्हें मारूंगा नहीं।”

    “छोड़ दो मुझे।” की आवाज़ में अजीब-ओ-ग़रीब क़िस्म की कपकपाहट थी।

    मैंने उसे अपनी गिरिफ़त से अलाहिदा कर दिया। लेकिन फ़ौरन ही अपने बाज़ूओं में उठा लिया। सड़क पर उसे उठाते वक़्त मुझे महसूस नहीं हुआ था। लेकिन उस वक़्त मैंने महसूस किया कि इस के कूल्हों का गोश्त बहुत ही नरम था... एक बात मुझे और भी मालूम हुई वो ये कि उस के एक हाथ में छोटा सा बैग था। मैंने उसे सोफे पर लिटा दिया और बैग इस के हाथ से ले लिया। “अगर इस में कोई क़ीमती चीज़ है तो यक़ीन रखू यहां बिलकुल महफ़ूज़ रहेगी... बल्कि चाहो तो मैं भी तुम्हें कुछ दे सकता हूँ।”

    वो बोली, “मुझे कुछ नहीं चाहिए।”

    “लेकिन मुझे चाहिए”

    इस ने पूछा, “क्या?”

    मैंने जवाब दिया, “तुम।”

    वो ख़ामोश होगई... मैं फ़र्श पर बैठ कर उस की पिंडली सहलाने लगा। वो काँप उठी। लेकिन मैं हाथ फेरता रहा। उस ने जब कोई मुज़ाहमत की तो मैंने सोचा कि मजबूरी की वजह से बेचारी ने अपना आप ढीला छोड़ दिया है। इस से मेरी तबीयत कुछ खट्टी सी होने लगी। चुनांचे मैंने उस से कहा। “देखो मैं ज़बरदस्ती कुछ नहीं करना चाहता। तुम्हें मंज़ूर नहीं है तो जाओ।”

    ये कह कर मैं उठने ही वाला था कि उस ने मेरा हाथ पकड़ कर अपने सीने पर रख लिया। जो कि धक धक कर रहा था। मेरा भी दिल उछलने लगा। मैंने ज़ोर से डार्लिंग कहा और इस के साथ चिमट गया।

    देर तक चूमा चाटी होती रही। वो सिसकियां भर भर के मुझे डार्लिंग कहती रही। मैं भी कुछ इसी क़िस्म की ख़ुराफ़ात बकता रहा। थोड़ी देर के बाद मैंने इस से कहा। “ये रैन कोर्ट उतार दो... बहुत ही वाहीयात है।”

    उस ने जज़्बात भरी आवाज़ में कहा, “तुम ख़ुद ही उतार दो नां।”

    मैंने उसे सहारा दे कर उठाया और कोट इस के बाज़ूओं में से खींच कर उतार दिया।

    उस ने बड़े प्यार से पूछा, “कौन हो तुम?”

    मैं उस वक़्त अपना हदूद अर्बा बताने के मूड में नहीं था, “तुम्हारा डार्लिंग!”

    उस ने “यू आर नोटी ब्वॉय” कहा और अपनी बाहें मेरे गले में डाल दीं मैं उस का बुलाउज़ उतारने लगा तो इस ने मेरे हाथ पकड़ लिए और इल्तिजा की।

    “मुझे नंगा ना करो डार्लिंग, मुझे नंगा ना करो।”

    मैंने कहा। “क्या हुआ... इस क़दर अंधेरा है।”

    “नहीं, नहीं!”

    “तो इस का ये मतलब है कि...” इस ने मेरे दोनों हाथ उठा कर चूमने शुरू कर दिए और लर्ज़ां आवाज़ में कहने लगी। “नहीं नहीं... मुझे श्रम आती है।”

    अजीब ही सी बात थी। लेकिन मैंने कहा। चलो हटाओ छोड़ो बुलाउज़ को। आहिस्ता आहिस्ता सब ठीक हो जाएगा। मैं कुछ देर ख़ामोश रहा तो उस ने डरी हुई आवाज़ में पूछा “तुम नाराज़ तो नहीं हो गए?”

    मुझे कुछ मालूम ही नहीं था कि मैं नाराज़ हूँ या क्या कहूं। चुनांचे मैंने उस से कहा “नहीं नहीं नाराज़ होने की क्या बात है... तुम बुलाउज़ नहीं उतारना चाहती हो, उतारो... लेकिन...” इस से आगे कहते हुए मुझे श्रम गई। लेकिन ज़रा गोल करके मैंने कहा। “लेकिन कुछ तो होना चाहिए। मेरा मतलब है कि साड़ी उतार दो...।

    “मुझे डर लगता है” ये कहते हुए उस का हलक़ सूख गया।

    मैंने बड़े प्यार से कहा, “किस से डर लगता है।”

    “उसी से... उसी से” और उस ने बिलक बिलक कर रोना शुरू कर दिया।

    मैंने उसे तसल्ली दी कि डरने की वजह कोई भी नहीं। मैं तुम्हें तकलीफ़ नहीं दूंगा। लेकिन अगर तुम्हें वाक़ई डर लगता है तो जाने दो... दो तीन दिन यहां रहो जब मेरी तरफ़ से तुम्हें पूरा इत्मिनान हो जाये तो फिर सही।

    इस ने रोते रोते कहा, “नहीं नहीं। और अपना सर मेरी रानों पर रख दिया।”

    मैं उस के बालों में उंगलीयों से कंघी करने लगा। थोड़ी ही देर के बाद उस ने रोना बंद कर दिया और सूखी सूखी हिचकियां लेने लगी। फिर एक दम मुझे अपने साथ ज़ोर के साथ भींच लिया और शिद्दत के साथ काँपने लगी। मैंने उसे सोफे पर से उठ कर फ़र्श पर बिठा दिया और...

    कमरे में दफ़ातन रोशनी की लकीरें तेर गईं। दरवाज़े पर दस्तक हुई। मैंने पूछा कौन है? नौकर की आवाज़ आई। “लालटैन ले लीजीए।” मैंने कहा, “अच्छा।” लेकिन उस ने आवाज़ भींच कर ख़ौफ़ज़दा लहजे में कहा, “नहीं नहीं।”

    मैंने कहा, “हर्ज क्या है। एक तरफ़ नीची करके रख दूंगा।” चुनांचे मैंने उठ कर लालटैन ली और दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया... इतनी देर के बाद रोशनी देखी थी। इस लिए आँखें चुन्ध्या गईं। वो उठ कर एक कोने में खड़ी हो गई थी। मैंने कहा, “भई इतना भी क्या है। थोड़ी देर रोशनी में बैठ कर बातें करते हैं। जब तुम कहोगी उसे गुल कर देंगे।”

    चुनांचे में लालटैन हाथ ही में लिए उस की तरफ़ बढ़ा। उस ने साड़ी का पल्लू सरका कि दोनों हाथों से चेहरा ढाँप लिया। मैंने कहा “तुम भी अजीब-ओ-ग़रीब लड़की हो... अपने दूल्हे से भी पर्दा।”

    ये कह मैं समझने लगा कि वो मेरी दूल्हन है और मैं उस का दूल्हा। चुनांचे इसी तसव्वुर के... तहत मैंने उस से कहा। “अगर ज़िद ही करनी है तो भई करलो... हमें आप की हर अदा क़बूल है।”

    एक दम ज़ोर का धमाका हुआ। वो मेरे साथ चिमट गई। कहीं बम फटा था। मैंने उस को दिलासा दिया। “डरो नहीं... मामूली बात है... एक दम मुझे ख़्याल आया जैसे मैंने इस के चेहरे की झलक देखी थी। चुनांचे उस को दोनों कंधों से पकड़ कर मैं एक क़दम पीछे हट गया... मैं बयान नहीं कर सकता। मैंने क्या देखा... बहुत ही भयानक सूरत, गाल अंदर धँसे हुए जिन पर गाढ़ा मेकअप्प थपा था। कई जगहों पर से उस की तहा बारिश की वजह से उत्तरी हुई थी और नीचे से असली जिल्द निकल आई थी जैसे कई ज़ख़मों पर से फाहे उतर गए हैं... ख़िज़ाब लगे ख़ुश्क और बेजान बाल जिन की सफ़ैद जड़ें दाँत दिखा रही थीं... और सब से अजीब-ओ-ग़रीब चीज़ मोमी फूल थे जो उस ने इस कान से उस कान तक माथे के साथ साथ बालों में अड़से हुए थे... मैं देर तक उस को देखता रहा। वो बिलकुल साकित खड़ी रही। मेरे होश-ओ-हवास गुम हो गए थे। थोड़ी देर के बाद जब में सँभला तो मैंने लालटैन एक तरफ़ रखी और इस से कहा “तुम जाना चाहो तो चली जाओ!”

    उस ने कुछ कहना चाहा। लेकिन जब देखा कि मैं उस का रेनकोट और बैग उठा रहा हूँ तो ख़ामोश होगई। मैंने ये दोनों चीज़ें उस की तरफ़ देखे बग़ैर उस को दे दीं। वो कुछ देर गर्दन झुकाए खड़ी रही। फिर दरवाज़ा खोला और बाहर निकल गई।

    ये वाक़िया सुना कर मैंने से पूछा, “जानते हो वो औरत कौन थी?”

    ने जवाब दिया, “नहीं तो।”

    मैंने उस को बताया। “वो औरत मशहूर आर्टिस्ट मिस “मीम” थी।”

    “वो चिल्लाया। मसम...? वही जिस की बनाई हुई तस्वीरों की मैं स्कूल में कापी किया करता था?”

    मैंने जवाब दिया। “वही... एक आर्ट कॉलिज की प्रिंसिपल थी। जहां वो लड़कीयों को सिर्फ़ औरतों और फूलों की तस्वीरकशी सिखाती थी... मर्दों से उसे सख़्त नफ़रत थी।”

    ये सुनकर 'स' कुछ सोचने लगा। एक दम चौंका, ''कहाँ है आजकल।''

    मैंने जवाब दिया, ''आसमान पर''

    उसने पूछा, ''क्या मतलब?''

    मैंने जवाब दिया, उसी रात को जब तुमने उसे बाहर निकाला उस की मोटर का हादिसा हुआ और वो मर गई। लेकिन इस के क़ातिल तुम हो। ये सिर्फ़ मैं जानता हूँ... नहीं... तुम दो औरतों के क़ातिल हो। एक उस औरत के जिसको सब मशहूर आर्टिस्ट की हैसियत से जानते हैं, दूसरी उस के जो तुम्हारे दीवानख़ाने में पहली औरत के क़ालिब में से बाहर निकली थी और जिसको सिर्फ तुम जानते हो...''

    'स' ख़ामोश रहा।

    स्रोत:

    نمرودکی خدائی

      • प्रकाशन वर्ष: 1952

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