Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

डायरेक्टर कृपलानी

सआदत हसन मंटो

डायरेक्टर कृपलानी

सआदत हसन मंटो

MORE BYसआदत हसन मंटो

    स्टोरीलाइन

    डायरेक्टर कृपलानी एक सिद्धांतवादी डायरेक्टर था। जवानी में इश्क़ में नाकाम हो चुका था और उसकी महबूबा भी मर गई थी इसीलिए फ़िल्म इंडस्ट्री में वो किसी लड़की को अपने क़रीब नहीं आने देता था। एक दिन नई हीरोइन के चयन के लिए उसे बुलाया गया तो उसकी शक्ल अपनी महबूबा से मिलती जुलती मालूम हुई और फिर पता चला कि वो उसकी महबूबा की बहन है। उसके अगले ही दिन कृपलानी की मौत हो जाती है।

    डायरेक्टर कृपलानी अपनी बलंद किरदारी और ख़ुश अतवारी की वजह से बंबई की फ़िल्म इंडस्ट्री में बड़े एहतराम की नज़र से देखा जाता था। बा’ज़ लोग तो हैरत का इज़हार करते थे कि ऐसा नेक और पाकबाज़ आदमी फ़िल्म डायरेक्टर क्यों बन गया क्योंकि फ़िल्म का मैदान ऐसा है जहां जा-ब-जा गढ़े होते हैं, अनदेखे गढ़े, बेशुमार दलदलें, जिनमें आदमी एक दफ़ा फंसा तो उम्र भर बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिलता।

    डायरेक्टर कृपलानी कामयाब डायरेक्टर था। उसका हर फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस हिट साबित हुआ। यही वजह है कि सब फ़िल्म साज़ उसकी ख़िदमात हासिल करने के लिए बेताब रहते, मगर वो लालची नहीं था। एक फ़िल्म बना कर वो दो-तीन महीने के लिए पंजगनी या रोनावला चला जाता और अपने आइंदा फ़िल्म की कहानी और मंज़रनामे बड़े इत्मिनान से तैयार करता रहता।

    वो रहने वाला सिंध हैदराबाद का था। सफ़ेद टोल की क़मीस और सफ़ेद ज़ीन की पतलून के इलावा और कोई लिबास नहीं पहनता था। शाम को छः बजे एक बोतल बियर की पीता लेकिन अगर शूटिंग रात को हो तो ये बोतल उसके कमरे में पड़ी रहती थी। नशे की हालत में काम करना पसंद नहीं करता था, इसलिए कि वो ये समझता था कि नशा इंसान के ज़ेहनी आ’साब को बरक़रार नहीं रख सकता।

    फ़िल्मी दुनिया में इश्क़ मुआ’शक़े आम होते हैं... आज अगर एक ऐक्ट्रस किसी डायरेक्टर के पास है तो दूसरे रोज़ वो किसी और डायरेक्टर की बग़ल में होगी। वहां से फिसल कर वो शायद किसी नवाब या राजा की गोद में चली जाये।

    सलुलाइड की ये दुनिया बड़ी निराली है। यहां धूप छाओं की सी कैफ़ियत रहती है। जिन दिनों की मैं बात कर रहा हूँ, एक ही दिन में कई वारदातें हुईं। एक ऐक्ट्रस अपने शौहर को छोड़कर किसी और के साथ भाग गई, पति देव साहब जिससे मिलते उसके सामने अपनी बदक़िस्मती का रोना रोते। एक डायरेक्टर ने अपनी बीवी को ज़हर दे कर मार डाला। दूसरे ने मुहब्बत की नाकामी के सदमे की ताब लाते हुए ख़ुदकुशी कर ली। एक ऐक्ट्रस के हरामी बच्चा पैदा हुआ।

    डायरेक्टर कृपलानी यूं तो इसी दुनिया में रहता था मगर सब से अलग थलग। उसको सिर्फ़ अपने काम से ग़रज़ थी। शूटिंग ख़त्म की और अपने ख़ूबसूरत फ़्लैट में वापस चला आया। उसे किसी ऐक्ट्रस से जिंसी तअ’ल्लुक़ात पैदा करने की कभी ख़्वाहिश ही नहीं थी।

    एक मर्तबा मिस... ने उससे रग़बत का इज़हार किया, कृपलानी उसको अ’लाहिदा कमरे में डायलाग की रिहर्सल करा रहा था कि उस ऐक्ट्रस ने उससे बड़े दिलबराना अंदाज़ में कहा, “कृपलानी साहब! आप पर सफ़ेद कपड़े बहुत फबते हैं, मैं भी अब सफ़ेद साड़ी और सफ़ेद ब्लाउज़ पहना करूंगी।”

    कृपलानी ने जिसके दिमाग़ में उस वक़्त फ़िल्माए जाने वाले सीन के डायलाग घुसे हुए थे, उससे कहा, “हाँ, मगर सफ़ेद चीज़ें बहुत जल्द मैली हो जाती हैं।”

    “तो क्या हुआ?”

    “हुआ तो कुछ भी नहीं, लेकिन तुम्हें कम अज़ कम चौदह-पंद्रह साड़ियां और उसी क़दर ब्लाउज़ बनवाने पड़ेंगे”

    ऐक्ट्रस मुस्कुराई, “बनवा लूंगी, आप ही ले देंगे।”

    कृपलानी चकरा गया, “मैं... मैं आपको क्यों लेकर दूंगा?”

    ऐक्ट्रस ने कृपलानी की क़मीज़ का कालर जो किसी क़दर सिमटा हुआ था, बड़े प्यार से दुरुस्त किया, “आप मेरे लिए सब कुछ करेंगे... और मैं आपके लिए।”

    क़रीब था कि वो ऐक्ट्रस कृपलानी के साथ चिमट जाये कि उसने उसको पीछे धकेल दिया और कहा, “ख़बरदार जो तुमने ऐसी बेहूदा हरकत की।”

    दूसरे रोज़ उसने उस ऐक्ट्रस को अपने फ़िल्म से निकाल बाहर फेंका। दो हज़ार रुपय एडवांस ले चुकी थी, कृपलानी ने सेठ से कहा कि वो रुपये उसके हिसाब में डाल दे।

    सेठ ने पूछा, “बात क्या है, मिस्टर कृपलानी?”

    “कोई बात नहीं है, वाहियात औरत है मैं उसको पसंद नहीं करता।”

    इत्तफ़ाक़ की बात है कि वो ऐक्ट्रस सेठ की मंज़ूर-ए-नज़र थी। सेठ ने जब ज़ोर दिया कि वो फ़िल्म कास्ट में मौजूद रहेगी तो कृपलानी दफ़्तर से बाहर चला गया और फिर वापस आया।

    कृपलानी की उम्र यही पैंतीस बरस के क़रीब होगी। ख़ुश शक्ल और नफ़ासतपसंद था। उसने अभी तक शादी नहीं की थी। अपने ख़ूबसूरत फ़्लैट में अकेला रहता, जहां उसके दो नौकर थे। बावर्ची और एक दूसरा नौकर जो घर की सफ़ाई करता था, और आराम आसाइश का ख़याल रखता था। वो उन दोनों से मुतमइन था।

    उसकी ज़िंदगी बड़ी हमवार गुज़र रही थी। उसे औरत से कोई लगाव नहीं था, मगर उसके हम-अस्र फ़िल्म डायरेक्टरों को सख़्त ता’ज्जुब था कि वो उ’मूमन रूमानी फ़िल्म बनाता था जिसमें मर्द और औरत की पुरजोश मुहब्बत के मनाज़िर होते थे।

    उसके दोस्त गिनती के थे, उन में से एक मैं था जिसको वो अपना अ’ज़ीज़ समझता था। एक दिन मैंने उससे पूछा “कृप, ये क्या बात है कि तुम कभी औरत के नज़दीक नहीं गए, पर तुम्हारे फिल्मों पर इश्क़-ओ-मुहब्बत के सिवा और कुछ भी नहीं होता। तजुर्बे के बग़ैर तुम ऐसे मनाज़िर क्यों कर लिखते हो, जिसमें क्यूपिड होता है या उसके तीर।”

    ये सुन कर वो मुस्कुराया, “आदमी तजुर्बे की बिना पर जो सोचे वो ठस होता है... पर तख़य्युल के ज़ोर से जो कुछ सोचे, उसमें हुस्न पैदा होता है। फ़िल्म साज़ी फ़रेबकारी का दूसरा नाम है... जब तक तुम उपने आपको फ़रेब दो, दूसरों को नहीं दे सकते।”

    उसका ये फ़लसफ़ा अ’जीब-ओ-ग़रीब था। मैंने उससे पूछा, “क्या तुमने तख़य्युल में कोई ऐसी औरत पैदा करली है जिससे तुम मुहब्बत करते हो।”

    कृपलानी फिर मुस्कुराया, “एक नहीं सैंकड़ों, एक औरत से मेरा काम कैसे चल सकता है? मुझे औरत से नहीं उसके किरदार से दिलचस्पी है, चुनांचे मैं एक औरत अपने तख़य्युल में पैदा करता हूँ और उसको उलट पलट करता रहता हूँ।”

    “उलट पलट से तुम्हारा क्या मतलब है?”

    “यार तुम बड़े कम समझ हो, औरत का जिस्मानी ढांचा तो एक ही क़िस्म का होता है, पर उसका कैरेक्टर जुदागाना होता है, कभी वो माँ होती है, कभी चुड़ैल, कभी बहन, कभी मर्दाना सिफ़ात रखने वाली। सो एक औरत में तुम सौ रूप देख सकते हो और सिर्फ़ अपने तख़य्युल की मदद से।”

    मैंने एक रोज़ उसकी ग़ैरमौजूदगी में उसके मेज़ का दराज़ खोला कि मेरे पास माचिस नहीं थी, तो मुझे काग़ज़ात का एक पुलिंदा नज़र आया, जो ग़ालिबन उसके ताज़ा फ़िल्म का मंज़रनामा था। मैंने उसको उठाया कि शायद उसके नीचे माचिस की कोई डिबिया हो, लेकिन उसके बजाय मुझे एक फ़ोटो दिखाई दी जो एक ख़ूबसूरत सिंधी लड़की की थी। मैं उस फ़ोटो को निकाल कर ग़ौर से देख ही रहा था कि कृपलानी आगया, उसने मेरे हाथ में फ़ोटो देखी तो दीवानावार आगे बढ़ कर छीन ली और उसे अपनी जेब में रख लिया।

    मैंने उससे मा’ज़रत तलब की, “माफ़ करना कृप, मैं दिया सलाई तलाश कर रहा था कि ये फ़ोटो मुझे नज़र आई और मैं उसे देखने लगा, किसकी है?”

    उसने ये कह कर मुआ’मला गोल करना चाहा, “किसी की है।”

    मैंने पूछा, “आख़िर किसकी? इस लड़की का कोई नाम तो होगा।”

    कृपलानी आराम कुर्सी पर बैठ गया, “इसके कई नाम हो सकते हैं, लेकिन वो राधा थी। नामों में क्या पड़ा है? ये वो लड़की है जिससे मैंने अ’र्सा हुआ मुहब्बत की थी।”

    मुझे सख़्त हैरत हुई, “तुम ने? तुमने मुहब्बत की थी।”

    “क्यों? मैं क्या मुहब्बत नहीं कर सकता? इसमें कोई शक नहीं कि अब मुहब्बत के नाम ही से दूर भागता हूँ लेकिन जवानी के दिनों में हर इंसान को ऐसे लम्हात से दो-चार होना पड़ता है जब वो दूसरी सिन्फ़ में बेपनाह कशिश महसूस करता है।”

    मैं जानना चाहता था कि कृपलानी को उस लड़की से कैसे इश्क़ हुआ, “ये कब की बात है कृप, तुम ने आज मुझे हैरतज़दा कर दिया कि तुम किसी से इश्क़ लड़ा चुके हो, तुम्हारे इश्क़ का अंजाम क्या हुआ?”

    कृपलानी ने बड़ी संजीदगी से जवाब दिया, “बहुत अफ़सोसनाक।”

    “क्यों?”

    “मैं उससे मुहब्बत करता रहा, मेरा ख़याल था कि वो भी मुझमें दिलचस्पी लेती है। आख़िर एक दिन जब मैंने उसे टटोला तो मुझे मालूम हुआ कि उसके दिल में मेरे लिए कोई जगह नहीं। उसने मुझ से साफ़ साफ़ कह दिया कि वो किसी और से मुहब्बत करती है, मेरा दिल टूट गया लेकिन मैंने अपने दिल में उस बुत को भी तोड़ डाला जिसकी मैं पूजा किया करता था। मैंने उसको बेशुमार बददुआएं दीं कि वो मर जाये।”

    मैंने पूछा, “क्या वो मर गई?”

    “हाँ, उसे मरना ही था, इसलिए कि उसने मुझे मार डाला था। उसको टाई फाइड हुआ और एक महीने के अंदर अंदर चल बसी।”

    “तुम्हें उसकी मौत का अफ़सोस हुआ?”

    “मुझे अफ़सोस क्यों होता? मेरी आँखों में चंद आँसू आए, बहने वाले थे कि मैंने उनसे कहा, बेवक़ूफ़ो क्यों ख़ुद को ज़ाए कर रहे हो, और वो मेरा कहा मान कर वापस चले गए जहां से आए थे।”

    ये कहते हुए कृपलानी की आँखों में आँसू तैर रहे थे, शायद वही जो उसका कहा मान कर वापस चले गए थे। मैंने सोचा कि अब इस मुआ’मले पर और ज़्यादा गुफ़्तगू नहीं करनी चाहिए, चुनांचे मैं उस से रुख़सत लिए बग़ैर चला गया, इसलिए कि मेरा ख़याल था कि वो तन्हाई में रह कर अपना जी हल्का करना चाहता है।

    दूसरे रोज़ उससे मुलाक़ात हुई तो वो ठीक ठाक था। मुझे अपने साथ स्टूडियो में ले गया, वहां चहक चहक कर मुझसे और अपने टेक्नीकल स्टाफ़ से बातें करता रहा। ये इस फ़िल्म की शूटिंग का आख़िरी दिन था।

    इसके बाद कृपलानी एडिटिंग में क़रीब क़रीब एक माह तक मसरूफ़ रहा। रिकार्डिंग हुई, प्रिंट तैयार हुए, फ़िल्म रीलीज़ हुआ और बहुत कामयाब साबित हुआ।

    हस्ब-ए-दस्तूर वो पंजगनी चला गया और डेढ़ महीने तक वहां बड़ी पुरसुकून और सेहत अफ़ज़ा फ़िज़ा में अपने आइंदा फ़िल्म के लिए कहानी और उसका मंज़रनामा तैयार करता रहा।

    उसका एक नई फ़िल्म कंपनी से कंट्रैक्ट हो चुका था, कहानी बहुत पसंद की गई। अब कास्ट चुनने का मरहला बाक़ी था। सेठ चाहता था कि हीरोइन के लिए कोई नया चेहरा लिया जाये। दर असल वो पहले ही से एक ख़ुश शक्ल लड़की मुंतख़ब कर चुका था। उसका इरादा ये नहीं था कि उस लड़की को एक दम हीरोइन बना दे। पर जब उसने कहानी सुनी तो उसकी हीरोइन में उसको हुबहू उसी लड़की की शक्ल-ओ-शबाहत और चाल ढाल नज़र आई।

    उसने कृपलानी से कहा, “मैंने एक लड़की को मुलाज़िम रखा है। आप उसे देख लीजिए। आप के फ़िल्म के लिए बड़ी मुनासिब हीरोइन रहेगी।”

    कृपलानी ने कहा, “आप उसको बुलाईए, मैं देख लूँगा, कैमरा और साउंड टेस्ट लेने के बाद अगर मेरा इत्मिनान हो गया तो मुझे कोई उज़्र नहीं होगा कि उसे हीरोइन का रोल दे दूँ।”

    दूसरे रोज़ सुबह दस बजे का वक़्त मुक़र्रर किया गया।

    कृपलानी की ये आदत थी कि सुबह सवेरे नाश्ते से फ़ारिग़ हो कर स्टूडियो जाता और इधर उधर टहलता रहता। दस बजे तक वो नए स्टूडियो की हर चीज़ देखता रहा, साढ़े दस बज गए उसने बियर की बोतल मंगवाई, मगर उसे खोला, इसलिए कि उसे याद आगया कि उसे नए चेहरे को देखना है।

    ग्यारह बज गए, मगर सेठ का दरयाफ़्त किया हुआ नया चेहरा नुमूदार हुआ। कृपलानी उकता गया, उसने अपनी कहानी के मंज़रनामे की वर्क़ गरदानी शुरू कर दी। उसमें कुछ तरमीम की, इस दौरान में बारह बज गए। वो सोफे पर लेट कर सोने ही वाला था कि चपड़ासी ने कहा, “सेठ साहब आपको सलाम बोलते हैं।”

    कृपलानी उठा, सेठ के दफ़्तर में गया जहां एक लड़की बैठी थी। उसकी पीठ उस की तरफ़ थी। जब वो सेठ की कुर्सी के साथ वाली कुर्सी पर बैठा तो दम-ब-ख़ुद हो गया। उस लड़की की शक्ल-ओ-सूरत बिल्कुल उस लड़की की सी थी जिससे उसने अ’र्सा हुआ मुहब्बत की थी।

    सेठ बातें करता रहा, मगर कृपलानी के मुँह से एक लफ़्ज़ भी निकला। बहरहाल, उस लड़की को हीरोइन के रोल के लिए मुंतख़ब कर लिया गया।

    कृपलानी उस लड़की को क़रीब क़रीब हर रोज़ देखता और उसका इज़्तिराब बढ़ता जाता। एक दिन उसने हिम्मत से काम लेकर उससे पूछा, “आप कहाँ की रहने वाली हैं?”

    लड़की ने जवाब दिया, “सिंध हैदराबाद की।”

    कृपलानी चकरा गया, “सिंध हैदराबाद की? आपका नाम?”

    लड़की ने बड़ी दिलफ़रेब मुस्कुराहट से कहा, “यशोधरा।”

    “आपकी कोई बहन है?”

    “थी... मगर उसका देहांत हो चुका है।”

    “क्या नाम था उनका?”

    “राधा!”

    कृपलानी ने यह सुनते ही अपने दिल को पकड़ लिया और बेहोश हो गया... और दूसरे रोज़ अचानक मर गया।

    स्रोत :
    • पुस्तक : منٹو نوادرات

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Rekhta Gujarati Utsav I Vadodara - 5th Jan 25 I Mumbai - 11th Jan 25 I Bhavnagar - 19th Jan 25

    Register for free
    बोलिए