शहज़ादा
एक के बाद एक कई लड़के सुधा को नापसंद कर के चले गए तो उसे कोई मलाल नहीं हुआ। मगर जब मोती ने उसे नापसंद किया तो उसने उसके इंकार में छुपी हुई हाँ को पहचान लिया और वह उस से मोहब्बत करने लगी। एक ख़याली मोहब्बत। जिसमें वह उसका शहज़ादा था। इसी ख़्याल में उसने अपनी पूरी उम्र तन्हा गुज़ार दी। मगर एक रोज़ उसे तब ज़बरदस्त झटका लगा जब मोती हक़ीक़त में उसके सामने आ खड़ा हुआ।
कृष्ण चंदर
सुर्मा
फ़हमीदा को सुर्मा लगाने का बेहद शौक़ था। शादी के बाद शौहर के टोकने पर उसने सुर्मा लगाना छोड़ दिया। फिर उसने नवजात बच्चे के सुर्मा लगाना शुरू किया लेकिन वो डबल निमोनिया से मर गया। एक दिन जब फ़हमीदा के शौहर ने उसे जगाने की कोशिश की तो वो मुर्दा पड़ी थी और उसके पहलू में एक गुड़िया थी जिसकी आँखें सुर्मे से भरी हुई थीं।
सआदत हसन मंटो
फूलों की साज़िश
विभिन्न हीलों और बहानों से एकता व अखंडता को तोड़ने वाले तत्वों को अलंकारिक प्रतिमान के रूप में रेखांकित किया गया है। एक दिन गुलाब माली के विरुद्ध प्रतिरोध की आवाज़ उठाता है और सारे फूलों को अपनी आज़ादी और अधिकारों की तरफ़ ध्यानाकर्षित करता है लेकिन चमेली अपनी नर्म और कोमल बातों से गुलाब को अपनी तरफ़ आकर्षित करके असल उद्देश्य से ध्यान भटका देती है। सुबह माली आकर दोनों को तोड़ लेता है।
सआदत हसन मंटो
मिस्टर मोईनुद्दीन
सामाजिक रसूख़ और साख के गिर्द घूमती यह कहानी मोईन-नामी व्यक्ति के वैवाहिक जीवन पर आधारित है। मोईन ने ज़ोहरा से उसके माँ-बाप के ख़िलाफ़ जाकर शादी की थी और फिर कराची में आ बसा था। कराची में उसकी बीवी का एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति के साथ सम्बंध हो जाता है। मोईन इस बारे में जानता है लेकिन अपनी मोहब्बत और सामाजिक साख के कारण वह बीवी को तलाक नहीं देता और उसे प्रेमी के साथ रहने की अनुमति दे देता है। कुछ अरसे बाद जब प्रेमी की मौत हो जाती है तो मोईन भी उसे तलाक दे देता है।
सआदत हसन मंटो
दूदा पहलवान
एक नौकर की अपने मालिक के प्रति वफ़ादारी इस कहानी का विषय है। सलाहू ने अपने लकड़पन के समय से ही दूदे पहलवान को अपने साथ रख लिया था। बाप की मौत के बाद सलाहू खुल गया था और हीरा मंडी की तवायफ़ों के बीच अपनी ज़िंदगी गुज़ारने लगा था। एक तवायफ़ की बेटी पर वह ऐसा आशिक़ हुआ कि उसका दिवाला ही निकल गया। घर को कुर्क होने से बचाने के लिए उसे बीस हज़ार रूपयों की ज़रूरत थी, जो उसे कहीं से न मिले। आख़िर में दूदे पहलवान ने ही अपना आत्म-सम्मान बेचकर उसके लिए पैसों का इंतेज़ाम किया।
सआदत हसन मंटो
भंगन
एक संदेह के कारण पति-पत्नी के बीच हुई तकरार पर आधारित कहानी। वह जब रात को पत्नी के पास जाता है तो पत्नी नाराज़़गी में उसे अपने से दूर कर देती है। वह उसे मनाने की कोशिश करता है, पर वह लगातार उससे नाराज़़ रहती है। आख़िर में जब वह पूछती है कि उसने सुबह भंगन को अपनी बाँहों में क्यों लिया था तो पति बताता है कि वह गर्भवती थी और बेहोश हो कर गिरने वाली थी। उसने तो बस उसे गिरने से बचाने के लिए सँभाल लिया था। पत्नी यह सुनकर ख़ुश हो गई।
सआदत हसन मंटो
तरक़्क़ी पसंद
तंज़-ओ-मिज़ाह के अंदाज़ में लिखी गई यह कहानी तरक्क़ी-पसंद अफ़साना-निगारों पर भी चोट करता है। जोगिंदर सिंह एक तरक्क़ी-पसंद कहानी-कार है जिसके यहाँ हरेंद्र सिंह आकर डेरा डाल देता है और निरंतर अपनी कहानियाँ सुना कर बोर करता रहता है। एक दिन अचानक जोगिंदर सिंह को एहसास होता है कि वो अपनी बीवी की हक़-तल्फ़ी कर रहा है। इसी ख़्याल से वो हरेंद्र से बाहर जाने का बहाना करके बीवी से रात बारह बजे आने का वादा करता है। लेकिन जब रात में जोगिंदर अपने घर के दरवाज़े पर दस्तक देता है तो उसकी बीवी के बजाय हरेंद्र दरवाज़ा खोलता है और कहता है जल्दी आ गए, आओ, अभी एक कहानी मुकम्मल की है, इसे सुनो।
सआदत हसन मंटो
अब्जी डूडू
यह पति-पत्नी के बीच रात में शारीरिक संबंधों को लेकर होने वाली नोक-झोंक पर आधारित कहानी है। पति पत्नी के साथ सोना चाहता है, जबकि पत्नी उसे लगातार इनकार करती रहती है। उसके इनकार को इक़रार में बदलने के लिए पति उसे हर तरह का प्रलोभन देता है, पर वह मानती नहीं। आख़िर में वह अपना आख़िरी दाँव चलता है और उसी में पत्नी को पस्त कर देता है।
सआदत हसन मंटो
मुलाक़ाती
छोटी-छोटी बातों को लेकर मियाँ-बीवी के बीच होने वाले वाद-विवाद को इस कहानी में दिखाया गया है। सुबह आने वाले किसी मुलाक़ाती पर संदेह करती हुई बीवी अपने शौहर से पूछती है कि सुबह उनसे कौन मिलने आया था? बीवी के इस सवाल के जवाब में शौहर उसके सामने हर तरह की दलील पेश करता है, मगर बीवी को किसी बात पर यक़ीन नहीं आता।
सआदत हसन मंटो
टूटे हुए तारे
एक तन्हा ड्राइवर, जो शराब पीता है और कश्मीर की वादियों में गाड़ी चला रहा है। वह नशे के ख़ुमार में है और सड़क पर गुज़रती दूसरी सवारियों को देखकर तरह-तरह के ख़्यालों से गुज़रता है। वह डाक बंगले पर पहुँचता है और अपनी रात रंगीन करने के लिए एक मुर्ग़ी और एक औरत मँगाता है। औरत मजबूर है और अपने बीमार बेटे की दवा के लिए उस से रुपयों की दरख़्वास्त करती हैं। उस ज़रूरत-मंद औरत के साथ हमबिस्तरी और उसके बाद की ड्राइवर की कैफ़ियत और सोच को ही इस कहानी में कहा गया है।
कृष्ण चंदर
शादी
यह कहानी एक ऐसे शख़्स की है, जो पाँच साल तक पश्चिमी सभ्यता में पला-बढ़ा है। उसने वहाँ के साहित्य को पढ़ा और समाज में पूरी तरह रच बस गया है। जब वह हिंदुस्तान लौटता है तो परिवार वाले उसकी शादी करने के लिए कहते हैं मगर वह बिना देखे, मिले किसी लड़की से शादी करने पर राज़ी नहीं होता। तीन साल तक ना-नूकुर करने के बाद आख़िर-कार वह मान ही जाता है। शादी होने के बाद वह अनजान होने पर बीवी के पास जाने से कतराता है। फिर एक रात तन्हा लेटे हुए कुछ नॉवेल के हिस्से याद आते हैं और वह अपनी बीवी की चाहत में तड़प उठता है और उसके पास चला जाता है।
अहमद अली
हरनाम कौर
अपने ज़माने में ताक़त और अपने बल के चलते मशहूर रहे एक सिख जट की कहानी। अब उसके पास केवल एक बेटा बहादुर सिंह है जिसकी परवरिश बीवी की मौत के बाद उसकी बहन ने की थी। मगर बहादुर सिंह में वह बात नहीं थी जो निहाल सिंह चाहता था। वह उसकी शादी को लेकर परेशान था। मगर बहादुर सिंह गाँव की किसी भी लड़की में दिलचस्पी ही नहीं लेता था। आख़िर में निहाल सिंह ने विभाजन के बाद पाकिस्तान जाने वाले काफ़िले से बहादुर सिंह के लिए एक लड़की लूट ली। उसने उसे बहादुर सिंह के कमरे में डाल कर दरवाज़ा बंद कर दिया। मगर जब उसने सुबह दरवाज़ा खोला तो सामने बहादुर सिंह सूट-सलवार पहने बैठा था और क़ाफ़िले वाली लड़की चारपाई के नीचे से निकल कर बाहर भाग गई।
सआदत हसन मंटो
कारमन
अमीर ख़ानदान के एक नौजवान द्वारा एक ग़रीब लड़की के शोषण की एक रिवायती कहानी है, जो लड़की के निःस्वार्थ प्रेम की त्रासदी है। लेकिन इस कहानी में बेहद सादगी, दिलकशी और आकर्षण है। आख़िर में पाठक तो कहानी के अंजाम से परिचित हो जाता है, लेकिन कारमन नहीं हो पाती है। सच कहा जाए तो इसी में उसकी भलाई भी है।
क़ुर्रतुलऐन हैदर
माई जनते
इस कहानी में घर में काम करने वाली आया का मालिकों का विश्वास जीतने, उनका शुभ चिंतक बनने और फिर उस विश्वास का दुरूपयोग करने के दोहरे चरित्र को उजागर किया गया है। ख़्वाज़ा करीम बख़्श की मौत के बाद उनकी विधवा हमीदा ने अपनी दो बेटियों की सारी ज़िम्मेदारी माई जनते को दे दी थी। वही लड़कियों के सारे काम किया करती थी। उन्हें कॉलेज ले जाती और लाती। जब उनमें से एक लड़की की शादी हुई तो निकाह के बाद पता चला कि वह उनकी लड़कियों से धंधा भी करवाती थी।
सआदत हसन मंटो
मज्जू भय्या
कहानी एक ऐसे शख़्स की दास्तान बयान करती है जिसका बाप पंडित आनंद सहाय ताल्लुक़दार का नौकर था। इकलौता होने पर भी बाप उसे रो‘अब-दाब में रखता था, बाप के मरते ही उसके पर निकल आए और वह पहलवानी के दंगल में कूद पड़ा। पहलवान के दंगल से निकला तो गाँव की सियासत में रम गया और यहाँ उसने ऐसे-ऐसे कारनामे अंजाम दिए कि अपनी एक अलग जागीर बना ली। मगर इस दौरान उससे मोहब्बत और नफ़रत करने वाले बहुत से औरत-मर्द हो गए, जिन्हें वह मौक़ा मिलते ही एक-एक कर अपने रास्ते से हटाता चला गया।