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यह इंतिख़ाब मिर्ज़ा ग़ालिब की उन अमर ग़ज़लों पर आधारित है, जिन्हें जगजीत सिंह ने अपनी मधुर और आत्मा को छू लेने वाली आवाज़ में गाया है। इन चुनी हुई ग़ज़लों में इश्क़ की तीव्रता, विरह का दर्द, और ज़िंदगी की गहराइयों से उभरती हुई सोच की वो कोमल परतें शामिल हैं जो दिल और दिमाग़ दोनों को समान रूप से प्रभावित करती हैं। यह चयन श्रोताओं को शास्त्रीय उर्दू शायरी की सुंदरता और ग़ज़ल गायकी की नज़ाकत से रूबरू कराता है — एक ऐसा मेल जो दिल को छू जाए और लंबे समय तक मन में गूँजता रहे। आइए, इस अनमोल इंतिख़ाब को पढ़िए, सुनिए, ग़ज़ल और आवाज़ की इस खूबसूरत संगति में डूब जाइए।

न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता

वीडियो का सेक्शन
इंटरव्यू और डॉक्यूमेंट्री फिल्में
न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता

न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता जगजीत सिंह

दोस्त ग़म-ख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्या

दोस्त ग़म-ख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्या जगजीत सिंह

सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं

सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं जगजीत सिंह

अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा

अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा जगजीत सिंह

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक जगजीत सिंह

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे जगजीत सिंह

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है जगजीत सिंह

दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ

दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ जगजीत सिंह

दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है

दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है जगजीत सिंह

दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ

दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ जगजीत सिंह

वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ

वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ जगजीत सिंह

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता जगजीत सिंह

न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता

यह इंतिख़ाब मिर्ज़ा ग़ालिब की उन अमर ग़ज़लों पर आधारित है, जिन्हें जगजीत सिंह ने अपनी मधुर और आत्मा को छू लेने वाली आवाज़ में गाया है। इन चुनी हुई ग़ज़लों में इश्क़ की तीव्रता, विरह का दर्द, और ज़िंदगी की गहराइयों से उभरती हुई सोच की वो कोमल परतें शामिल हैं जो दिल और दिमाग़ दोनों को समान रूप से प्रभावित करती हैं। यह चयन श्रोताओं को शास्त्रीय उर्दू शायरी की सुंदरता और ग़ज़ल गायकी की नज़ाकत से रूबरू कराता है — एक ऐसा मेल जो दिल को छू जाए और लंबे समय तक मन में गूँजता रहे। आइए, इस अनमोल इंतिख़ाब को पढ़िए, सुनिए, ग़ज़ल और आवाज़ की इस खूबसूरत संगति में डूब जाइए। न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता

दोस्त ग़म-ख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्या

यह इंतिख़ाब मिर्ज़ा ग़ालिब की उन अमर ग़ज़लों पर आधारित है, जिन्हें जगजीत सिंह ने अपनी मधुर और आत्मा को छू लेने वाली आवाज़ में गाया है। इन चुनी हुई ग़ज़लों में इश्क़ की तीव्रता, विरह का दर्द, और ज़िंदगी की गहराइयों से उभरती हुई सोच की वो कोमल परतें शामिल हैं जो दिल और दिमाग़ दोनों को समान रूप से प्रभावित करती हैं। यह चयन श्रोताओं को शास्त्रीय उर्दू शायरी की सुंदरता और ग़ज़ल गायकी की नज़ाकत से रूबरू कराता है — एक ऐसा मेल जो दिल को छू जाए और लंबे समय तक मन में गूँजता रहे। आइए, इस अनमोल इंतिख़ाब को पढ़िए, सुनिए, ग़ज़ल और आवाज़ की इस खूबसूरत संगति में डूब जाइए। दोस्त ग़म-ख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्या

सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं

यह इंतिख़ाब मिर्ज़ा ग़ालिब की उन अमर ग़ज़लों पर आधारित है, जिन्हें जगजीत सिंह ने अपनी मधुर और आत्मा को छू लेने वाली आवाज़ में गाया है। इन चुनी हुई ग़ज़लों में इश्क़ की तीव्रता, विरह का दर्द, और ज़िंदगी की गहराइयों से उभरती हुई सोच की वो कोमल परतें शामिल हैं जो दिल और दिमाग़ दोनों को समान रूप से प्रभावित करती हैं। यह चयन श्रोताओं को शास्त्रीय उर्दू शायरी की सुंदरता और ग़ज़ल गायकी की नज़ाकत से रूबरू कराता है — एक ऐसा मेल जो दिल को छू जाए और लंबे समय तक मन में गूँजता रहे। आइए, इस अनमोल इंतिख़ाब को पढ़िए, सुनिए, ग़ज़ल और आवाज़ की इस खूबसूरत संगति में डूब जाइए। सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं

अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा

यह इंतिख़ाब मिर्ज़ा ग़ालिब की उन अमर ग़ज़लों पर आधारित है, जिन्हें जगजीत सिंह ने अपनी मधुर और आत्मा को छू लेने वाली आवाज़ में गाया है। इन चुनी हुई ग़ज़लों में इश्क़ की तीव्रता, विरह का दर्द, और ज़िंदगी की गहराइयों से उभरती हुई सोच की वो कोमल परतें शामिल हैं जो दिल और दिमाग़ दोनों को समान रूप से प्रभावित करती हैं। यह चयन श्रोताओं को शास्त्रीय उर्दू शायरी की सुंदरता और ग़ज़ल गायकी की नज़ाकत से रूबरू कराता है — एक ऐसा मेल जो दिल को छू जाए और लंबे समय तक मन में गूँजता रहे। आइए, इस अनमोल इंतिख़ाब को पढ़िए, सुनिए, ग़ज़ल और आवाज़ की इस खूबसूरत संगति में डूब जाइए। अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक

यह इंतिख़ाब मिर्ज़ा ग़ालिब की उन अमर ग़ज़लों पर आधारित है, जिन्हें जगजीत सिंह ने अपनी मधुर और आत्मा को छू लेने वाली आवाज़ में गाया है। इन चुनी हुई ग़ज़लों में इश्क़ की तीव्रता, विरह का दर्द, और ज़िंदगी की गहराइयों से उभरती हुई सोच की वो कोमल परतें शामिल हैं जो दिल और दिमाग़ दोनों को समान रूप से प्रभावित करती हैं। यह चयन श्रोताओं को शास्त्रीय उर्दू शायरी की सुंदरता और ग़ज़ल गायकी की नज़ाकत से रूबरू कराता है — एक ऐसा मेल जो दिल को छू जाए और लंबे समय तक मन में गूँजता रहे। आइए, इस अनमोल इंतिख़ाब को पढ़िए, सुनिए, ग़ज़ल और आवाज़ की इस खूबसूरत संगति में डूब जाइए। आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे

यह इंतिख़ाब मिर्ज़ा ग़ालिब की उन अमर ग़ज़लों पर आधारित है, जिन्हें जगजीत सिंह ने अपनी मधुर और आत्मा को छू लेने वाली आवाज़ में गाया है। इन चुनी हुई ग़ज़लों में इश्क़ की तीव्रता, विरह का दर्द, और ज़िंदगी की गहराइयों से उभरती हुई सोच की वो कोमल परतें शामिल हैं जो दिल और दिमाग़ दोनों को समान रूप से प्रभावित करती हैं। यह चयन श्रोताओं को शास्त्रीय उर्दू शायरी की सुंदरता और ग़ज़ल गायकी की नज़ाकत से रूबरू कराता है — एक ऐसा मेल जो दिल को छू जाए और लंबे समय तक मन में गूँजता रहे। आइए, इस अनमोल इंतिख़ाब को पढ़िए, सुनिए, ग़ज़ल और आवाज़ की इस खूबसूरत संगति में डूब जाइए। बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है

यह इंतिख़ाब मिर्ज़ा ग़ालिब की उन अमर ग़ज़लों पर आधारित है, जिन्हें जगजीत सिंह ने अपनी मधुर और आत्मा को छू लेने वाली आवाज़ में गाया है। इन चुनी हुई ग़ज़लों में इश्क़ की तीव्रता, विरह का दर्द, और ज़िंदगी की गहराइयों से उभरती हुई सोच की वो कोमल परतें शामिल हैं जो दिल और दिमाग़ दोनों को समान रूप से प्रभावित करती हैं। यह चयन श्रोताओं को शास्त्रीय उर्दू शायरी की सुंदरता और ग़ज़ल गायकी की नज़ाकत से रूबरू कराता है — एक ऐसा मेल जो दिल को छू जाए और लंबे समय तक मन में गूँजता रहे। आइए, इस अनमोल इंतिख़ाब को पढ़िए, सुनिए, ग़ज़ल और आवाज़ की इस खूबसूरत संगति में डूब जाइए। हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है

दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ

यह इंतिख़ाब मिर्ज़ा ग़ालिब की उन अमर ग़ज़लों पर आधारित है, जिन्हें जगजीत सिंह ने अपनी मधुर और आत्मा को छू लेने वाली आवाज़ में गाया है। इन चुनी हुई ग़ज़लों में इश्क़ की तीव्रता, विरह का दर्द, और ज़िंदगी की गहराइयों से उभरती हुई सोच की वो कोमल परतें शामिल हैं जो दिल और दिमाग़ दोनों को समान रूप से प्रभावित करती हैं। यह चयन श्रोताओं को शास्त्रीय उर्दू शायरी की सुंदरता और ग़ज़ल गायकी की नज़ाकत से रूबरू कराता है — एक ऐसा मेल जो दिल को छू जाए और लंबे समय तक मन में गूँजता रहे। आइए, इस अनमोल इंतिख़ाब को पढ़िए, सुनिए, ग़ज़ल और आवाज़ की इस खूबसूरत संगति में डूब जाइए। दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ

दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है

यह इंतिख़ाब मिर्ज़ा ग़ालिब की उन अमर ग़ज़लों पर आधारित है, जिन्हें जगजीत सिंह ने अपनी मधुर और आत्मा को छू लेने वाली आवाज़ में गाया है। इन चुनी हुई ग़ज़लों में इश्क़ की तीव्रता, विरह का दर्द, और ज़िंदगी की गहराइयों से उभरती हुई सोच की वो कोमल परतें शामिल हैं जो दिल और दिमाग़ दोनों को समान रूप से प्रभावित करती हैं। यह चयन श्रोताओं को शास्त्रीय उर्दू शायरी की सुंदरता और ग़ज़ल गायकी की नज़ाकत से रूबरू कराता है — एक ऐसा मेल जो दिल को छू जाए और लंबे समय तक मन में गूँजता रहे। आइए, इस अनमोल इंतिख़ाब को पढ़िए, सुनिए, ग़ज़ल और आवाज़ की इस खूबसूरत संगति में डूब जाइए। दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है

दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ

यह इंतिख़ाब मिर्ज़ा ग़ालिब की उन अमर ग़ज़लों पर आधारित है, जिन्हें जगजीत सिंह ने अपनी मधुर और आत्मा को छू लेने वाली आवाज़ में गाया है। इन चुनी हुई ग़ज़लों में इश्क़ की तीव्रता, विरह का दर्द, और ज़िंदगी की गहराइयों से उभरती हुई सोच की वो कोमल परतें शामिल हैं जो दिल और दिमाग़ दोनों को समान रूप से प्रभावित करती हैं। यह चयन श्रोताओं को शास्त्रीय उर्दू शायरी की सुंदरता और ग़ज़ल गायकी की नज़ाकत से रूबरू कराता है — एक ऐसा मेल जो दिल को छू जाए और लंबे समय तक मन में गूँजता रहे। आइए, इस अनमोल इंतिख़ाब को पढ़िए, सुनिए, ग़ज़ल और आवाज़ की इस खूबसूरत संगति में डूब जाइए। दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ

वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ

यह इंतिख़ाब मिर्ज़ा ग़ालिब की उन अमर ग़ज़लों पर आधारित है, जिन्हें जगजीत सिंह ने अपनी मधुर और आत्मा को छू लेने वाली आवाज़ में गाया है। इन चुनी हुई ग़ज़लों में इश्क़ की तीव्रता, विरह का दर्द, और ज़िंदगी की गहराइयों से उभरती हुई सोच की वो कोमल परतें शामिल हैं जो दिल और दिमाग़ दोनों को समान रूप से प्रभावित करती हैं। यह चयन श्रोताओं को शास्त्रीय उर्दू शायरी की सुंदरता और ग़ज़ल गायकी की नज़ाकत से रूबरू कराता है — एक ऐसा मेल जो दिल को छू जाए और लंबे समय तक मन में गूँजता रहे। आइए, इस अनमोल इंतिख़ाब को पढ़िए, सुनिए, ग़ज़ल और आवाज़ की इस खूबसूरत संगति में डूब जाइए। वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

यह इंतिख़ाब मिर्ज़ा ग़ालिब की उन अमर ग़ज़लों पर आधारित है, जिन्हें जगजीत सिंह ने अपनी मधुर और आत्मा को छू लेने वाली आवाज़ में गाया है। इन चुनी हुई ग़ज़लों में इश्क़ की तीव्रता, विरह का दर्द, और ज़िंदगी की गहराइयों से उभरती हुई सोच की वो कोमल परतें शामिल हैं जो दिल और दिमाग़ दोनों को समान रूप से प्रभावित करती हैं। यह चयन श्रोताओं को शास्त्रीय उर्दू शायरी की सुंदरता और ग़ज़ल गायकी की नज़ाकत से रूबरू कराता है — एक ऐसा मेल जो दिल को छू जाए और लंबे समय तक मन में गूँजता रहे। आइए, इस अनमोल इंतिख़ाब को पढ़िए, सुनिए, ग़ज़ल और आवाज़ की इस खूबसूरत संगति में डूब जाइए। ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

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