aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
शब्दार्थ
अब नहीं जन्नत मशाम-ए-कूचा-ए-यार की शमीम
निकहत-ए-ज़ुल्फ़ क्या हुई बाद-ए-सबा को क्या हुआ
"हम-नफ़सो उजड़ गईं मेहर-ओ-वफ़ा की बस्तियाँ" ग़ज़ल से की अब्दुल मजीद सालिक