aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
शब्दार्थ
सताइश-गर है ज़ाहिद इस क़दर जिस बाग़-ए-रिज़वाँ का
वो इक गुल-दस्ता है हम बे-ख़ुदों के ताक़-ए-निस्याँ का
"सताइश-गर है ज़ाहिद इस क़दर जिस बाग़-ए-रिज़वाँ का" ग़ज़ल से की मिर्ज़ा ग़ालिब