aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
शब्दार्थ
क्यूँ लोगों से मेहर-ओ-वफ़ा की आस लगाए बैठे हो
झूट के इस मकरूह नगर में लोगों का किरदार कहाँ
"घेरा डाले हुए है दुश्मन बचने के आसार कहाँ" ग़ज़ल से की कुमार पाशी
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