देहाती बोलियाँ 2
पंजाब के छोटे छोटे दिहातों में बंजारों की आमद बहुत एहमियत रखती है। औरतें आम तौर पर अपने सिंगार का सामान इन्ही बंजारों से खरीदती हैं। दिहाती ज़िंदगी में बंजारे को अपने पेशे और अपनी चलती फिरती दुकान की वजह से काफ़ी एहमियत हासिल है, चुनांचे दिहाती गीतों और बोलियों में इसका ज़िक्र आम है चूँकि वो एक जगह टिक कर नहीं रहता इसलिए उसे बेवफ़ाई की तज्सीम बना दिया गया है। मुझे इस वक़्त कोई ऐसा गीत याद नहीं आ रहा जिसमें बंजारे का ज़िक्र हो मगर चंद बोल मेरे ज़हन में गूंज रहे हैं जो मैंने ख़ुदा मालूम कहाँ और कब सुने थे,
ओ वंजारा, भूला वंजारा... और यार कुवारा
साडे ओ हाँ दा... ठग वंजारा
मतलब- वो बंजारा, वो भला बंजारा... वो हमारा कुंवारा यार हमारा हम-उम्र है वो ठग बंजारा...
ये शायद एक कुंवारी लड़की के जज़्बात हैं जिसमें दोशीज़ा मुहब्बत के उतार चढ़ाओ बड़ी प्यारी लहरों की सूरत में दिखाई देते हैं।
ये बंजारे कांच की रंग-ब-रंग चूड़ियां भी लाते हैं जो दिहात की कुंवारियां हाथों-हाथ लेती हैं। चूड़ियां चढ़ाने में ये बंजारे बड़ी महारत रखते हैं। चुनांचे पारे की तरह मचलती हुई कलाइयों में भी बड़ी फुर्ती से कांच की खनखनाती हुई चूड़ियां, यूं चुटकियों में चढ़ा देते हैं। वो किस अंदाज़ से दिहात की नौजवान लड़कियों की उंगलियां चटख़ाते हैं और किस अंदाज़ से उनके हाथ अपने हाथों में दबाते हैं। उसका तसव्वुर आप ख़ुद कीजिए... मेरे तसव्वुर में वो जवान लड़की है जिसने नीली चूड़ियां पहनी हैं, उसकी साँवली बाँहों में ये चूड़ियां देखकर आसमान भी निखर गया है... लड़की बड़े चाव से बार-बार अपनी चूड़ियों को दाद भरी निगाहों से देखती जा रही है। उधर खेतों की तरफ़ जहां कपास उग रही है, बबूलों के झुण्ड में से दफ़अतन उसका आशिक़ निकलता है और दोनों की मुठभेड़ हो जाती है जाने क्या बात है। दोनों एक दूसरे से खिंचे खिंचे नज़र आते हैं। नौजवान उसको सख़्त हाथों से पकड़ना चाहता है, मगर वो मछली के मानिंद उसकी गिरफ़्त से फिसल फिसल जाती है। थोड़ी सी कश्मकश के बाद वो खिलखिला कर हँसती है मगर फ़ौरन ही मस्नूई संजीदगी इख़्तियार कर के कहती है,
इसां नवीयाँ चढ़ाईयाँ चूड़ियां
हथां तय ना मारें वेरिया
मतलब- हमने ये चूड़ियां नई नई पहनी हैं... देखो हमारे हाथों पर ना मारना।
हंसी मज़ाक़ ख़त्म होता है। लड़की जिसका नाम बंतो है। बार-बार अपनी आँख मलती है। उसका चाहने वाला उससे पूछता है। 'क्या हुआ बंतो तेरी आँख को क्या हो गया है?'
वो आँख मलकर कहती है। 'तिनका पड़ गया है।'
कहेड़े यार दा गत्तावा कीता अख् विच कुख् पै गया।
मतलब- तू ने किस यार के लिए गाय भैंसों का चारा तैयार किया है कि तेरी आँख में तिनका पड़ गया है।
थोड़ी सी छेड़-छाड़ के बाद मेले की बातचीत होती है। बंतो का दोस्त बड़े ठाट से बैसाखी के मेले पर जा रहा है। गले में सोने का ये मोटा कंठा (ज़ेवर) पड़ा है। क़मीस धारीदार कपड़े की है, जिससे शहरी शबख़ाबी का लिबास बनाते हैं। हाथ में नई लाठी है जिसको तेल पिलाया गया है। चर्चर करता जूता है। बिल्कुल नया जिसने अभी से काटना शुरू कर दिया है। जब मेले जाने के लिए सब लोग निकलेंगे तो ये जूता उस की लाठी से बंधा होगा। उसके पास एक छाता भी है, जो गांव में और किसी के पास नहीं, इसलिए वो उसे ज़रूर साथ लेकर जाएगा। बारिश नहीं तो क्या। शान तो बढ़ जाएगी।
मेले का सुनकर बंतो के मुँह में पानी आ जाता है। वो उस से कहती है,
मेले चिलियां तय लिया देवें पहुंची
वे ले जा मेरा गुट मन के
मतलब- तू मेले पर जा रहा है तो मेरे लिए एक पहुंची ज़रूर लाना... लो मेरी कलाई का नाप लेते जाओ।
सताने के लिए वह इनकार कर देता है। हम तुम्हारे क्या होते हैं कि तुम्हारी रोज़ रोज़ की फ़रमाइशें पूरी करते रहें। नहीं हम तुम्हारे लिए मेले से कुछ नहीं लाएँगे।
थोड़ी देर चख़-चख़ होती है, आख़िर बंतो मलामत आमेज़ लहजे में थक-हार कर अपने दोस्त से कहती है,
मेरी इक ना मनी कमजाता।
तेरियां में लिख मंदी
मतलब- कम ज़ात तू ने मेरी ये एक छोटी सी बात नहीं मानी और मैं तो तेरी लाखों बातें मानती हूँ।
इस पर अज़-राह-ए-मज़ाक़ बंतो का दोस्त उससे कहता है। 'क्यों?' बस...? ये तो वही हुआ...
कच्ची यारी लडुवां दी
लड्डू मुक गए यराने टुट गए
मतलब- लड्डुओं की दोस्ती... (यानी वो दोस्ती जिसमें चीज़ों का लेन-देन हो कच्ची होती है...) लड्डू ख़त्म हो गए और दोस्ती भी ख़त्म हो गई।
ये सुनकर बंतो के एहसास को ठेस लगती है। उसकी आँखों में आँसू आ जाते हैं और एकदम उसके सीने से आह उठती है वो सोचती है,
क्या खटीया ई इश्क़-ए-गुल ला के
जिंदड़ी नों रोग लालिया
मतलब- इश्क़ को गले लगा कर यानी मुहब्बत करके तू ने किया फ़ायदा हासिल किया है। सिवाए इसके कि अपनी जान को एक रोग लगाया है... इश्क़ करने से पहले क्या उसके कानों ने बार-बार नहीं सुना था...
कुत्ते डब ना मरी अंजाना वे
अश्के दी नहर वगदी
(मतलब- ऐ अंजान तू कहीं डूब ना मरे। तेरे आगे इश्क़ की नहर चल रही है।)
उसको ये सब कुछ मालूम था, मगर फिर भी वो इश्क़ में गिरफ़्तार हो गई और वो बन-ठन के रहने लगी... अभी थोड़े ही रोज़ हुए उसने मुहल्ले के रंगरेज़ से कहा था,
चुनी रंग दे लल्ला रिया मेरी
वे अलसी दे फल वर्गी
मतलब- ऐ रंगरेज़ मेरा दुपट्टा रंग दे। ऐसे रंग में जो अलसी के फूल की तरह हो (अलसी के फूल का रंग बहुत ख़ूबसूरत होता है।)
और उसका इश्क़ कितना सादिक़ था। जिस रोज़ उसने ये सुना था कि वो बीमार है तो उसको कितना दुख हुआ था और जब चौथे रोज़ धान के खेतों में बंतो की उससे मुलाक़ात हुई थी तो उसने कहा था,
तेरी मेरी इक जिंदड़ी
तीनों ताप चढ़े में हो नगां
मतलब:- तेरी मेरी इक जान है यानी यक-जान-ओ-दो (२) क़ालिब वाला मुआमला है।
तुझे बुख़ार चढ़े तो मैं हँका रे भर्ती हूँ
सोचते सोचते वो अपने दोस्त की तरफ़ मलामत भरी नज़रों से देखती है और कहती है। 'क्या मैंने तुमसे कहा नहीं था...'
मेरा कालजा गुंडे दे छल वर्गा
वेखें यारा पाड़ ना स्टें
मतलब- मेरा कलेजा प्याज़ के छिलके की तरह नाज़ुक है, देखना कहीं इसे छेड़-छाड़ ना देना।
ये कह कर वो बैरी के पास बैठ कर ज़ार-ओ-क़तार रोना शुरू कर देती है। उसका आशिक़ जिसने सिर्फ़ छेड़ने की ख़ातिर उसे लड्डुओं का ताना दिया था। सख़्त परेशान होता है। उसकी समझ में नहीं आता कि क्या करे। वो उसको हज़ार दिलासा देता है, मगर वो रोय जाती है। माफियां मांगता है मगर उसके आँसू नहीं थमते। भई मैंने क्या कहा है जो तुम्हारे आँसू ही बंद नहीं होते। कोई मुझसे ख़ता हो गई हो तो माफ़ कर दो। लो अब चुप हो जाओ। ग़ुस्से को थूक दो... हद हो गई है... अरे भई कुछ तो ख़्याल करो। कोई यहां आ निकले तो क्या समझे... बस अब चुप हो जाओ... आख़िर हुआ किया है...? कुछ मुझे भी तो पता चले।'
वो रोय जाती है और इस बात पर उड़ जाती है।
तेरे सामने बैठ के रोना।
तय दुख तीनों नहियों दसना।
मतलब- तेरे सामने बैठ के रोऊँगी पर ये नहीं बताऊंगी कि मुझे दुख क्या पहुंचा है...
आशिक़ के लिए कितना बड़ा दुख है। बंतो सामने बैठ के रोय जा रही है। पर ये बताने के लिए तैयार नहीं कि उसे क्या दुख पहुंचा है। इससे बढ़कर रुहानी सज़ा वो अपने आशिक़ को और क्या दे सकती है।
चंद रोज़ के बाद ये बात सारे गांव में फैल जाती है कि बंतो और उसके आशिक़ का आपस में बिगाड़ पैदा हो गया है, चुनांचे तरह तरह की बातें सुनने में आती हैं। बात का बतंगड़ बन जाता है। लोग बंतो के आशिक़ को ताने देते हैं, चुनांचे वो बंतो को मुख़ातब करके कहता है,
क्या कचए तेरी यारी
महिना महिना हो के टुट गई
मतलब- ऐ ख़ाम औरत (कच्ची यानी वो औरत जो इश्क़ करने के मुआमले में बिलकुल ख़ाम हो) तेरी दोस्ती भी क्या थी जो ताना ताना हो कर टूट गई।
एक रोज़ बंतो ने उसे दूर कटे हुए दरख़्तों के पास बैठे हुए देखा उसके दिल में एक हैजान सा बरपा हो गया।
यारी तोड़ के खंडां तय बे गयां तय हिन् तूं केहड़ा रब हो गयां।
मतलब- दोस्ती ख़त्म कर के तू मुझसे दूर कटे हुए दरख़्तों की जड़ों पर बैठ गया है, लेकिन तू ऐसा करने से ख़ुदा तो नहीं हो गया।
दरख़्तों की टंड मंड जड़ों पर ऐसे कई ख़ुदा देहातों में बैठे रहते हैं जिनकी ख़ुदाई आन की आन में औंधी हो जाती है... आसमानों वाला ख़ुदा ऊपर बैठ कर ये तमाशा देखता रहता है और ख़ामोश रहता है।
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