आरिफ़ इमाम
ग़ज़ल 13
अशआर 13
अपने ही पैरों से अपना-आप रौंद
अपनी हस्ती को मिटा कर रक़्स कर
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अभी तो मैं ने फ़क़त बारिशों को झेला है
अब इस के ब'अद समुंदर भी देखना है मुझे
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ख़ून कितना बहा था मक़्तल में
मेरी आँखों में ख़ून उतरने तक
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बना रहा हूँ अभी घर को आइना-ख़ाना
फिर अपने हाथ में पत्थर भी देखना है मुझे
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हवस न जान तुझे छू के देखना ये है
तुझे ही देख रहे हैं कि ख़्वाब देखते हैं
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वीडियो 4
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