आह किस से कहें कि हम क्या थे
सब यही देखते हैं क्या हैं हम
असर लखनऊ के ख़ास सांस्कृतिक और शायराना माहौल व मिज़ाज का प्रतिनिधित्व करने वाले शायरों के आख़िरी गिरोह से हैं। उनकी पैदाइश 12 जुलाई 1885 को लखनऊ के मुहल्ला कटरा अबुतुराब में हुई। उनका असल नाम मिर्ज़ा जाफ़र अली ख़ाँ था, असर तख़ल्लुस करते थे। किंग कालेज लखनऊ से शिक्षा प्राप्त की। डिप्टी कलेक्ट्री के साथ कई और महत्वपूर्ण पदों पर भी अपनी सेवाएं दी। वह कुछ अर्से रियासत जम्मू-ओ-कश्मीर के वज़ीर भी रहे। उनकी सेवाओं को स्वीकार करते हुए भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण के सम्मान से मम्मानित किया।
असर लखनवी की शायरी विषयगत रूप से तो पारंपरिक स्वभाव के ही हैं जो उस वक़्त के लखनऊ में आम था लेकिन इश्क़िया विषयों के इस पारंपरिक बयान को उनकी ज़बान की सफ़ाई और रोज़मर्रा के ख़ूबसूरत इस्तेमाल ने विशेष चीज़ बना दिया है। अज़ीज़ लखनवी की उस्तादी ने उनके शे’रों में और चमक पैदा की।
शायरी के साथ असर लखनवी ने विभिन्न साहित्यिक विषयों पर आलेख भी लिखे। उनके आलेखों का सग्रंह ‘छानबीन’ के नाम से प्रकाशित हुआ। मीर अनीस और ग़ालिब पर उनकी किताबें भी बहुत महत्वपूर्ण हैं।
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