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बशर नवाज़

1935 - 2015 | औरंगाबाद, भारत

प्रतिष्ठित प्रगतिशील शायर,आलोचक,पटकथा लेखक,और गीतकार/ फ़िल्म 'बाजार' के गीत 'करोगे याद तो हर बात याद आएगी' के लिए प्रसिद्ध

प्रतिष्ठित प्रगतिशील शायर,आलोचक,पटकथा लेखक,और गीतकार/ फ़िल्म 'बाजार' के गीत 'करोगे याद तो हर बात याद आएगी' के लिए प्रसिद्ध

बशर नवाज़ के शेर

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घटती बढ़ती रौशनियों ने मुझे समझा नहीं

मैं किसी पत्थर किसी दीवार का साया नहीं

जाने किन रिश्तों ने मुझ को बाँध रक्खा है कि मैं

मुद्दतों से आँधियों की ज़द में हूँ बिखरा नहीं

दे निशानी कोई ऐसी कि सदा याद रहे

ज़ख़्म की बात है क्या ज़ख़्म तो भर जाएँगे

करोगे याद तो हर बात याद आएगी

गुज़रते वक़्त की हर मौज ठहर जाएगी

बहुत था ख़ौफ़ जिस का फिर वही क़िस्सा निकल आया

मिरे दुख से किसी आवाज़ का रिश्ता निकल आया

कहते कहते कुछ बदल देता है क्यूँ बातों का रुख़

क्यूँ ख़ुद अपने-आप के भी साथ वो सच्चा नहीं

ये एहतिमाम-ए-चराग़ाँ बजा सही लेकिन

सहर तो हो नहीं सकती दिए जलाने से

प्यार के बंधन ख़ून के रिश्ते टूट गए ख़्वाबों की तरह

जागती आँखें देख रही थीं क्या क्या कारोबार हुए

कोई यादों से जोड़ ले हम को

हम भी इक टूटता सा रिश्ता हैं

तुझ में और मुझ में तअल्लुक़ है वही

है जो रिश्ता साज़ और मिज़राब में

तेज़ हवाएँ आँखों में तो रेत दुखों की भर ही गईं

जलते लम्हे रफ़्ता रफ़्ता दिल को भी झुलसाएँगे

वही है रंग मगर बू है कुछ लहू जैसी

ये अब की फ़स्ल में खिलते गुलाब कैसे हैं

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