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एहसान दानिश

1914 - 1982 | लाहौर, पाकिस्तान

20वीं सदी के चौथे और पाँचवे दशकों के सबसे लोकप्रिय शायरों में से एक, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के समकालीन।

20वीं सदी के चौथे और पाँचवे दशकों के सबसे लोकप्रिय शायरों में से एक, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के समकालीन।

एहसान दानिश

ग़ज़ल 61

अशआर 40

'एहसान' अपना कोई बुरे वक़्त का नहीं

अहबाब बेवफ़ा हैं ख़ुदा बे-नियाज़ है

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ख़ाक से सैंकड़ों उगे ख़ुर्शीद

है अंधेरा मगर चराग़-तले

मरने वाले फ़ना भी पर्दा है

उठ सके गर तो ये हिजाब उठा

लोग यूँ देख के हँस देते हैं

तू मुझे भूल गया हो जैसे

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वफ़ा का अहद था दिल को सँभालने के लिए

वो हँस पड़े मुझे मुश्किल में डालने के लिए

क़ितआ 29

क़िस्सा 3

 

पुस्तकें 33

चित्र शायरी 2

 

वीडियो 17

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

एहसान दानिश

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एहसान दानिश

एहसान दानिश

एहसान दानिश

एहसान दानिश

कुछ लोग जो सवार हैं काग़ज़ की नाव पर

एहसान दानिश

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