तर्क-ए-तअल्लुक़ात को इक लम्हा चाहिए
लेकिन तमाम उम्र मुझे सोचना पड़ा
फ़ना निज़ामी कानपूरी, मिर्ज़ा निसार अली बेग (1922-1988) पारंपरिक ग़ज़ल-शाइरी के रस-रंग, सुगंध, भाव और लय को अपने एक नए अन्दाज़ से पेश करने वाले प्रमुख शाइर, जिन्होंने ज़बरदस्त लोकप्रियता हासिल की। कानपुर (उत्तर प्रदेश) में जन्म और देहांत। मज़हबी होने के बावजूद उर्दू शाइरी की मानवता वादी दृष्टि से संपन्न।