ख़ुशबीर सिंह शाद
ग़ज़ल 27
अशआर 36
कई ना-आश्ना चेहरे हिजाबों से निकल आए
नए किरदार माज़ी की किताबों से निकल आए
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कुछ तलब में भी इज़ाफ़ा करती हैं महरूमियाँ
प्यास का एहसास बढ़ जाता है सहरा देख कर
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थे जिस का मरकज़ी किरदार एक उम्र तलक
पता चला कि उसी दास्ताँ के थे ही नहीं
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न जाने कितनी अज़िय्यत से ख़ुद गुज़रता है
ये ज़ख़्म तब कहीं जा कर निशाँ बनाता है
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रगों में ज़हर-ए-ख़ामोशी उतरने से ज़रा पहले
बहुत तड़पी कोई आवाज़ मरने से ज़रा पहले
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पुस्तकें 8
चित्र शायरी 3
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