मजीद अमजद
ग़ज़ल 36
नज़्म 49
अशआर 19
क्या रूप दोस्ती का क्या रंग दुश्मनी का
कोई नहीं जहाँ में कोई नहीं किसी का
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चाँदनी में साया-हा-ए-काख़-ओ-कू में घूमिए
फिर किसी को चाहने की आरज़ू में घूमिए
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ज़िंदगी की राहतें मिलती नहीं मिलती नहीं
ज़िंदगी का ज़हर पी कर जुस्तुजू में घुमिए
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तिरे ख़याल के पहलू से उठ के जब देखा
महक रहा था ज़माने में चार-सू तिरा ग़म
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मेरी मानिंद ख़ुद-निगर तन्हा
ये सुराही में फूल नर्गिस का
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पुस्तकें 3
चित्र शायरी 2
जुनून-ए-इश्क़ की रस्म-ए-अजीब क्या कहना मैं उन से दूर वो मेरे क़रीब क्या कहना ये तीरगी-ए-मुसलसल में एक वक़्फ़ा-ए-नूर ये ज़िंदगी का तिलिस्म-ए-अजीब क्या कहना जो तुम हो बर्क़-ए-नशेमन तो मैं नशेमन-ए-बर्क़ उलझ पड़े हैं हमारे नसीब क्या कहना हुजूम-ए-रंग फ़रावाँ सही मगर फिर भी बहार नौहा-ए-सद अंदलीब क्या कहना हज़ार क़ाफ़िला-ए-ज़िंदगी की तीरा-शबी ये रौशनी सी उफ़ुक़ के क़रीब क्या कहना लरज़ गई तिरी लौ मेरे डगमगाने से चराग़-ए-गोशा-ए-कू-ए-हबीब क्या कहना