संपूर्ण
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ग़ज़ल94
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दोहा12
फ़िल्मी गीत18
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल 94
नज़्म 48
अशआर 81
अब किसी से भी शिकायत न रही
जाने किस किस से गिला था पहले
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ग़म हो कि ख़ुशी दोनों कुछ दूर के साथी हैं
फिर रस्ता ही रस्ता है हँसना है न रोना है
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बहुत मुश्किल है बंजारा-मिज़ाजी
सलीक़ा चाहिए आवारगी में
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सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो
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सब कुछ तो है क्या ढूँडती रहती हैं निगाहें
क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूँ नहीं जाता
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दोहा 12
फ़िल्मी गीत 18
पुस्तकें 30
चित्र शायरी 25
हर तरफ़ हर जगह बे-शुमार आदमी फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी सुब्ह से शाम तक बोझ ढोता हुआ अपनी ही लाश का ख़ुद मज़ार आदमी हर तरफ़ भागते दौड़ते रास्ते हर तरफ़ आदमी का शिकार आदमी रोज़ जीता हुआ रोज़ मरता हुआ हर नए दिन नया इंतिज़ार आदमी घर की दहलीज़ से गेहूँ के खेत तक चलता फिरता कोई कारोबार आदमी ज़िंदगी का मुक़द्दर सफ़र-दर-सफ़र आख़िरी साँस तक बे-क़रार आदमी
वीडियो 45
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