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रईस अमरोहवी

1914 - 1988 | कराची, पाकिस्तान

रईस अमरोहवी

ग़ज़ल 42

नज़्म 5

 

अशआर 17

अपने को तलाश कर रहा हूँ

अपनी ही तलब से डर रहा हूँ

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दिल से मत सरसरी गुज़र कि 'रईस'

ये ज़मीं आसमाँ से आती है

सदियों तक एहतिमाम-ए-शब-ए-हिज्र में रहे

सदियों से इंतिज़ार-ए-सहर कर रहे हैं हम

हम अपने हाल-ए-परेशाँ पे बारहा रोए

और उस के ब'अद हँसी हम को बारहा आई

हम अपनी ज़िंदगी तो बसर कर चुके 'रईस'

ये किस की ज़ीस्त है जो बसर कर रहे हैं हम

हास्य शायरी 2

 

क़ितआ 4

 

नअत 1

 

पुस्तकें 40

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रईस अमरोहवी

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रईस अमरोहवी

रईस अमरोहवी

Reciting own poetry at a mushaira

रईस अमरोहवी

अपने को तलाश कर रहा हूँ

रईस अमरोहवी

ख़ामोश ज़िंदगी जो बसर कर रहे हैं हम

रईस अमरोहवी

ग़ुरूब-ए-मेहर का मातम है गुलिस्तानों में

रईस अमरोहवी

महजूर-ए-हर-अंजुमन हैं हम लोग

रईस अमरोहवी

ये फ़क़त शोरिश-ए-हवा तो नहीं

रईस अमरोहवी

रईस अमरोहवी

अपने को तलाश कर रहा हूँ

रईस अमरोहवी

ख़ामोश ज़िंदगी जो बसर कर रहे हैं हम

रईस अमरोहवी

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