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सालिक लखनवी

1913 - 2013 | कोलकाता, भारत

सालिक लखनवी

ग़ज़ल 21

अशआर 23

साहिल पे क़ैद लाखों सफ़ीनों के वास्ते

मेरी शिकस्ता नाव है तूफ़ाँ लिए हुए

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मंज़िल मिली कश्मकश-ए-अहल-ए-नज़र में

इस भीड़ से मैं अपनी नज़र ले के चला हूँ

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जो तेरी बज़्म से उट्ठा वो इस तरह उट्ठा

किसी की आँख में आँसू किसी के दामन में

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ये भी इक रात कट ही जाएगी

सुब्ह-ए-फ़र्दा की मुंतज़िर है निगाह

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अपनी ख़ुद्दारी सलामत दिल का आलम कुछ सही

जिस जगह से उठ चुके हैं उस जगह फिर जाएँ क्या

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