सलमान अख़्तर
ग़ज़ल 24
अशआर 29
अपनी आदत कि सब से सब कह दें
शहर का है मिज़ाज सन्नाटा
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ऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत न हो मगर
पहले सा जोश पहले सी शिद्दत नहीं रही
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कोई शय एक सी नहीं रहती
उम्र ढलती है ग़म बदलते हैं
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वो एक ख़्वाब जो फिर लौट कर नहीं आया
वो इक ख़याल जिसे मैं भुला नहीं सकता
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