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प्रमुख और नई दिशा देने वाले आधुनिक शायर

प्रमुख और नई दिशा देने वाले आधुनिक शायर

साक़ी फ़ारुक़ी

ग़ज़ल 60

नज़्म 42

अशआर 57

आग हो दिल में तो आँखों में धनक पैदा हो

रूह में रौशनी लहजे में चमक पैदा हो

उस के वारिस नज़र नहीं आए

शायद उस लाश के पते हैं बहुत

तेरे चेहरे पे उजाले की सख़ावत ऐसी

और मिरी रूह में नादार अंधेरा ऐसा

मुद्दत हुई इक शख़्स ने दिल तोड़ दिया था

इस वास्ते अपनों से मोहब्बत नहीं करते

मेरी आँखों में अनोखे जुर्म की तज्वीज़ थी

सिर्फ़ देखा था उसे उस का बदन मैला हुआ

पुस्तकें 17

वीडियो 8

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वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
ख़ामुशी छेड़ रही है कोई नौहा अपना

साक़ी फ़ारुक़ी

मैं खिल नहीं सका कि मुझे नम नहीं मिला

साक़ी फ़ारुक़ी

मैं तेरे ज़ुल्म दिखाता हूँ अपना मातम करने के लिए

साक़ी फ़ारुक़ी

ये कौन आया शबिस्ताँ के ख़्वाब पहने हुए

साक़ी फ़ारुक़ी

रात नादीदा बलाओं के असर में हम थे

साक़ी फ़ारुक़ी

हैं सेहर-ए-मुसव्विर में क़यामत नहीं करते

साक़ी फ़ारुक़ी

हिरास फैल गया है ज़मीन-दानों में

साक़ी फ़ारुक़ी

ऑडियो 69

अभी नज़र में ठहर ध्यान से उतर के न जा

आग हो दिल में तो आँखों में धनक पैदा हो

इक रात हम ऐसे मिलें जब ध्यान में साए न हों

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