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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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शहराम सर्मदी

1975 | दिल्ली, भारत

शहराम सर्मदी

ग़ज़ल 67

नज़्म 40

अशआर 3

ब-नाम-ए-इश्क़ इक एहसान सा अभी तक है

वो सादा-लौह हमें चाहता अभी तक है

मिरे अलावा सभी लोग अब ये मानते हैं

ग़लत नहीं थी मिरी राय उस के बारे में

फ़क़त ज़मान मकाँ में ज़रा सा फ़र्क़ आया

जो एक मसअला-ए-दर्द था अभी तक है

 

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