अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे सुदीप बनर्जी
कभी साया है कभी धूप मुक़द्दर मेरा सुदीप बनर्जी
रक़ीब-ए-जाँ नज़र का नूर हो जाए तो क्या कीजे सुदीप बनर्जी
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