ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी के वीडियो
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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
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ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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एक जा हर्फ़-ए-वफ़ा लिक्खा था सो भी मिट गया ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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कहते तो हो तुम सब कि बुत-ए-ग़ालिया-मू आए ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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कोई उम्मीद बर नहीं आती ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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कोई दिन गर ज़िंदगानी और है ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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गर ख़ामुशी से फ़ाएदा इख़्फ़ा-ए-हाल है ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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चाहिए अच्छों को जितना चाहिए ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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ज़ुल्मत-कदे में मेरे शब-ए-ग़म का जोश है ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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जिस बज़्म में तू नाज़ से गुफ़्तार में आवे ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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ज़ौक़ ओ शौक़ ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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तस्कीं को हम न रोएँ जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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दिया है दिल अगर उस को बशर है क्या कहिए ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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दिल से तिरी निगाह जिगर तक उतर गई ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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धोता हूँ जब मैं पीने को उस सीम-तन के पाँव ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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न हुई गर मिरे मरने से तसल्ली न सही ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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बे-ए'तिदालियों से सुबुक सब में हम हुए ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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लेनिन ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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सर-गश्तगी में आलम-ए-हस्ती से यास है ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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सादगी पर उस की मर जाने की हसरत दिल में है ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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सादगी पर उस की मर जाने की हसरत दिल में है ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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है यक दो नफ़स सैर-ए-जहान-ए-गुज़राँ और ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायाँ मुझ से ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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हसद से दिल अगर अफ़्सुर्दा है गर्म-ए-तमाशा हो ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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हुस्न-ए-मह गरचे ब-हंगाम-ए-कमाल अच्छा है ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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इक जाम खनकता जाम कि साक़ी रात गुज़रने वाली है ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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उस बज़्म में मुझे नहीं बनती हया किए ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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ऐ शरीफ़ इंसानो ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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क्यूँ जल गया न ताब-ए-रुख़-ए-यार देख कर ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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कहते हो न देंगे हम दिल अगर पड़ा पाया ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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कार-गाह-ए-हस्ती में लाला दाग़-सामाँ है ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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ख़िज़्र-ए-राह ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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ग़ुंचा-ए-ना-शगुफ़्ता को दूर से मत दिखा कि यूँ ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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ग़म-ए-दुनिया से गर पाई भी फ़ुर्सत सर उठाने की ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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गुलशन में बंदोबस्त ब-रंग-ए-दिगर है आज ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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जुज़ क़ैस और कोई न आया ब-रू-ए-कार ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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जुनूँ की दस्त-गीरी किस से हो गर हो न उर्यानी ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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जब क़तअ' की मसाफ़त-ए-शब आफ़ताब ने ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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जिब्रईल-ओ-इबलीस ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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तुम जानो तुम को ग़ैर से जो रस्म-ओ-राह हो ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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तेरे तौसन को सबा बाँधते हैं ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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देखना क़िस्मत कि आप अपने पे रश्क आ जाए है ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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दहर में नक़्श-ए-वफ़ा वजह-ए-तसल्ली न हुआ ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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दिल मिरा सोज़-ए-निहाँ से बे-मुहाबा जल गया ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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दीवानगी से दोश पे ज़ुन्नार भी नहीं ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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धमकी में मर गया जो न बाब-ए-नबर्द था ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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नक़्श फ़रियादी है किस की शोख़ी-ए-तहरीर का ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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नफ़स न अंजुमन-ए-आरज़ू से बाहर खींच ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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नहीं कि मुझ को क़यामत का ए'तिक़ाद नहीं ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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पतरस बुख़ारी मरहूम ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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फ़ारिग़ मुझे न जान कि मानिंद-ए-सुब्ह-ओ-मेहर ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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बख़ुदा फ़ारस-ए-मैदान-ए-तहव्वुर था 'हुर' ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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बला से हैं जो ये पेश-ए-नज़र दर-ओ-दीवार ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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बिसात-ए-इज्ज़ में था एक दिल यक क़तरा ख़ूँ वो भी ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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मकतबों में कहीं रानाई-ए-अफ़कार भी है ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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मज़े जहान के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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महरम नहीं है तू ही नवा-हा-ए-राज़ का ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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रफ़्तार-ए-उम्र क़त-ए-रह-ए-इज़्तिराब है ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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लरज़ता है मिरा दिल ज़हमत-ए-मेहर-ए-दरख़्शाँ पर ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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लाज़िम था कि देखो मिरा रस्ता कोई दिन और ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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वाँ पहुँच कर जो ग़श आता पए-हम है हम को ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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वारस्ता उस से हैं कि मोहब्बत ही क्यूँ न हो ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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वालिदा मरहूमा की याद में ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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सताइश-गर है ज़ाहिद इस क़दर जिस बाग़-ए-रिज़वाँ का ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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सद जल्वा रू-ब-रू है जो मिज़्गाँ उठाइए ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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सरापा रेहन-इश्क़-ओ-ना-गुज़ीर-उल्फ़त-हस्ती ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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है आरमीदगी में निकोहिश बजा मुझे ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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है बस-कि हर इक उन के इशारे में निशाँ और ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़ ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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हुस्न ग़म्ज़े की कशाकश से छुटा मेरे बा'द ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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दाइम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
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ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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आता है नज़र अंजाम कि साक़ी रात गुज़रने वाली है ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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गुम-कर्दा-राह ख़ाक-बसर हूँ ज़रा ठहर ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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