Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Aale Ahmad Suroor's Photo'

आल-ए-अहमद सुरूर

1911 - 2002 | अलीगढ़, भारत

आधुनिक उर्दू आलोचना के संस्थापकों में शामिल हैं।

आधुनिक उर्दू आलोचना के संस्थापकों में शामिल हैं।

आल-ए-अहमद सुरूर

लेख 40

उद्धरण 30

अदब इंक़लाब नहीं लाता बल्कि इंक़लाब के लिए ज़हन को बेदार करता है।

  • शेयर कीजिए

ग़ज़ल हमारी सारी शायरी नहीं है, मगर हमारी शायरी का इत्र ज़रूर है।

  • शेयर कीजिए

शायरी में वाक़िया जब तक तजरबा बने उसकी अहमियत नहीं है। ख़्याल जब तक तख़य्युल के सहारे रंगा-रंग और पहलूदार हो, बेकार है। और एहसास जब तक आम और सत्ही एहसास से बुलंद हो कर दिल की धड़कन, लहू की तरंग, रूह की पुकार बन जाये उस वक़्त तक इसमें वो थरथराहट, गूंज, लपक, कैफ़ियत, तासीर-ओ-दिल-गुदाज़ी और दिलनवाज़ी नहीं आती, जो फ़न की पहचान है।

  • शेयर कीजिए

ग़ज़ल इबारत, इशारत और अदा का आर्ट है।

  • शेयर कीजिए

फ़न की वजह से फ़न्कार अज़ीज़ और मोहतरम होना चाहिए। फ़न्कार की वजह से फ़न नहीं।

  • शेयर कीजिए

तंज़-ओ-मज़ाह 1

 

अशआर 20

साहिल के सुकूँ से किसे इंकार है लेकिन

तूफ़ान से लड़ने में मज़ा और ही कुछ है

  • शेयर कीजिए

हम जिस के हो गए वो हमारा हो सका

यूँ भी हुआ हिसाब बराबर कभी कभी

तुम्हारी मस्लहत अच्छी कि अपना ये जुनूँ बेहतर

सँभल कर गिरने वालो हम तो गिर गिर कर सँभले हैं

  • शेयर कीजिए

आती है धार उन के करम से शुऊर में

दुश्मन मिले हैं दोस्त से बेहतर कभी कभी

बस्तियाँ कुछ हुईं वीरान तो मातम कैसा

कुछ ख़राबे भी तो आबाद हुआ करते हैं

ग़ज़ल 31

नज़्म 6

पुस्तकें 1441

ऑडियो 11

आज से पहले तिरे मस्तों की ये ख़्वारी न थी

कुछ लोग तग़य्युर से अभी काँप रहे हैं

ख़ुदा-परस्त मिले और न बुत-परस्त मिले

Recitation

"अलीगढ़" के और लेखक

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए