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आसी उल्दनी

1893 - 1946 | लखनऊ, भारत

लखनऊ के लोकप्रिय शायर और विद्वान, दाग़ और नातिक़ गुलावठी के शागिर्द. ग़ालिब और हाफ़िज़ के कलम की व्याख्यान की और अनुवाद किया. इसके अलावा उर्दू की क़दीम शायरात (प्राचीन कवयित्रियों) का तज़्किरा भी सम्पादित किया

लखनऊ के लोकप्रिय शायर और विद्वान, दाग़ और नातिक़ गुलावठी के शागिर्द. ग़ालिब और हाफ़िज़ के कलम की व्याख्यान की और अनुवाद किया. इसके अलावा उर्दू की क़दीम शायरात (प्राचीन कवयित्रियों) का तज़्किरा भी सम्पादित किया

आसी उल्दनी

ग़ज़ल 3

 

अशआर 7

अपनी हालत का ख़ुद एहसास नहीं है मुझ को

मैं ने औरों से सुना है कि परेशान हूँ मैं

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कहते हैं कि उम्मीद पे जीता है ज़माना

वो क्या करे जिस को कोई उम्मीद नहीं हो

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सब्र पर दिल को तो आमादा किया है लेकिन

होश उड़ जाते हैं अब भी तिरी आवाज़ के साथ

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बेताब सा फिरता है कई रोज़ से 'आसी'

बेचारे ने फिर तुम को कहीं देख लिया है

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इश्क़ पाबंद-ए-वफ़ा है कि पाबंद-ए-रुसूम

सर झुकाने को नहीं कहते हैं सज्दा करना

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रुबाई 3

 

पुस्तकें 30

चित्र शायरी 2

 

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