अब्दुर्रहमान मोमिन के शेर
आज सूरज ने कह दिया 'मोमिन'
तू जलेगा तो रौशनी होगी
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ज़ख़्म खा कर भी जो दुआएँ दे
कौन उस का मुक़ाबला करेगा
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अभी से तुझ को पड़ी है विसाल की मिरी जाँ
अभी तो हिज्र ने उन्वान ही नहीं पाया
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जिस रस्ते में तुम मिल जाओ
वो रस्ता मंज़िल होता है
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उस ने वा'दा नहीं लिया मुझ से
और कहता है मैं मुकर रहा हूँ
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याद आते हैं वे दिन बहुत
क्यों न वे दिन दोबारा करें
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सितम तो ये है कि मैं ने उसे भी छोड़ दिया
जो सब को छोड़ के तन्हा खड़ा है मेरे साथ
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ख़्वाब मेरे चुरा लिए उस ने
जिस को मैं ने उधार दीं आँखें
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वे सामने से जा चुका तो ये खुला
वो ख़्वाब लग रहा था ख़्वाब था नहीं
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तू ने मुझ को बना दिया इंसाँ
मैं ने तुझ को ख़ुदा बनाया है
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कैसे कैसे मैं भूला हूँ
कैसे याद आ जाता है तू
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वे रातें जो गुज़रती ही नहीं थीं
उन्हें गुज़रे ज़माने हो गए हैं
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'मोमिन-मियाँ' ये काम नहीं है ये इश्क़ है
क्या सोच में पड़े हो करूँ या करूँ नहीं
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कैसी अजीब बात है तू सामने था और
मैं तेरे सामने भी किसी और से मिला
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वो जो कल तक हाँ में हाँ करता था मेरी
आज तो वो भी नहीं पर आ गया है
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चाँद में तू नज़र आया था मुझे
मैं ने महताब नहीं देखा था
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जाने क्या कह रहा था वो मुझ से
मैं ने भी कह दिया कि ख़ुश हूँ मैं
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तुम से मिल कर मैं उस को भूल गया
जिस ने तुम से मुझे मिलाया है
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चाँद में तू नज़र आया था मुझे
मैं ने महताब नहीं देखा था
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छोड़ आए हैं वे गली लेकिन
वे गली छोड़ कर नहीं जाती
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ख़ुद को कितना भुला दिया मैं ने
तू भी अब अजनबी सा लगता है
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मुझे भी अक़्ल परेशान करती रहती है
नहीं नहीं से गुज़र कर मैं हाँ पे आया हूँ
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क्या बताऊँ छुपा है मुझ में कौन
कौन मुझ में छुपा रहा है मुझे
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कफ़न की जेब भी ख़ाली नहीं है
ये बद-हाली है ख़ुश-हाली नहीं है
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मैं जहाँ भी गया तुझे पाया
तू भी क्या यूँ ही पा रहा है मुझे
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जो लिखा ही नहीं गया मुझ से
दिल ने वो गीत गुनगुनाया है
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हिज्र का बाब ही काफ़ी था हमें
वस्ल का बाब नहीं देखा था
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