अब्दुस्समद ’तपिश’
ग़ज़ल 21
अशआर 20
क्यूँ वो मिलने से गुरेज़ाँ इस क़दर होने लगे
मेरे उन के दरमियाँ दीवार रख जाता है कौन
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
न जाने कौन फ़ज़ाओं में ज़हर घोल गया
हरा-भरा सा शजर बे-लिबास कैसा है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
मैं भी तन्हा इस तरफ़ हूँ वो भी तन्हा उस तरफ़
मैं परेशाँ हूँ तो हूँ वो भी परेशानी में है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
वही क़ातिल वही मुंसिफ़ बना है
उसी से फ़ैसला ठहरा हुआ है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए