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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Abrar Azmi's Photo'

अबरार आज़मी

1936 - 2020 | आज़मगढ़, भारत

अबरार आज़मी के शेर

कमरे में धुआँ दर्द की पहचान बना था

कल रात कोई फिर मिरा मेहमान बना था

तमाम रात वो पहलू को गर्म करता रहा

किसी की याद का नश्शा शराब जैसा था

परिंदे फ़ज़ाओं में फिर खो गए

धुआँ ही धुआँ आशियानों में था

मुझे भी फ़ुर्सत-ए-नज़्ज़ारा-ए-जमाल थी

और उस को पास किसी और के भी जाना था

आवाज़ों का बोझ उठाए सदियों से

बंजारों की तरह गुज़ारा करता हूँ

शायद तुम्हारी याद मिरे पास गई

या है मिरे ही दिल की सदा सोचना पड़ा

चेहरों के मैले जिस्मों के जंगल थे हर जगह

उन में कहीं भी कोई मगर आदमी था

मैं ने कल तोड़ा इक आईना तो महसूस हुआ

इस में पोशीदा कोई चीज़ थी जौहर जैसी

ख़ुशनुमा दीवार-ओ-दर के ख़्वाब ही देखा किए

जिस्म सहरा ज़ेहन वीराँ आँख गीली हो गई

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