अफ़ज़ल परवेज़ के दोहे
रैन बड़ी कलमोही काया छाया एक करे
ऊषा की जय हो हर आशा असली रूप भरे
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
कीच ही कीच है नील कँवल तक काए करूँ उपाए
इक पल खींच निकारूँ दूजा और भी धँसता जाए
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
अँधियारी रातों के राही रैन है ऐसी घोर
शरण के कारन दस्तक दो तो बस्ती जाने चोर
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया