aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1740 | फ़ैज़ाबाद, भारत
जिसे इशरत-कदा-ए-दहर समझता था मैं
आख़िर-ए-कार वो इक ख़्वाब-ए-परेशाँ निकला
दुनिया के जो मज़े हैं हरगिज़ वो कम न होंगे
चर्चे यूँही रहेंगे अफ़्सोस हम न होंगे
बुरा हो या-इलाही दिल-लगी का
घटा की उम्र और उल्फ़त बढ़ा की
यकताई पे है नाज़ तो इतना भी रहे याद
तुम सा मुझे तो तुम को भी मुझ सा न मिलेगा
दुनिया के जो मज़े हैं हरगिज़ वो कम न होंगे चर्चे यूँही रहेंगे अफ़्सोस हम न होंगे
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